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Showing posts from November, 2017

श्मशानों को अशुभ मानने की भ्रांति पर एक करारी चोट

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 आज दैनिक जागरण में छपी एक न्यूज़ जिसमें गुजरात स्थित गाँव तलगाजराड़ा मे नवविवाहित जोड़े ने श्मशान घाट में शादी के फेरे लिए,ने जहाँ मेरे अज्ञान की पुस्तक के एक अध्याय को समाप्त किया, वहीं अंधविश्वास विरोधी अस्त्र के रूप में यह समाचार मेरे हाथों में आ गया।      श्मशान को अशुभ या खराब मानने की भ्रांति सदियों से भारतीयों के मन मे अपनी पकड़ जमाये बैठी है जबकि हमको मालूम है जीवन का अटल सत्य मृत्यु है। जब पैदा होने वाले अस्पताल ,घर या अन्य स्थान को हम अशुभ नही मानते तो श्मशान ,जहाँ अटल सत्य विद्यमान है, को किस आधार पर अशुभ होने की संज्ञा दे देते है।            श्मशानों को भूतों का डेरा मानने वाले बच्चों के मन से से यह भ्रांति तब ही दूर की जा सकेगी जब उनका जन्मदिन व युवा होने पर उनके विवाह श्मशान घाटों को पवित्र स्थल मानकर उन्हीं में सम्पन्न कराए जाएं। साथ ही बच्चों को बताया जाए कि श्मशान स्थल कोई भय पैदा करने की जगह नही वरन शांति का वह स्थान है जहाँ मनुष्य को अपने जीवन के अटल सत्य के दर्शन होते है।

पद्मावती विवाद में संकीर्ण सोच के दर्शन

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            धार्मिक संकीर्णता की सीढ़ी चढ़ते हुए भारतीय समाज को सहिष्णुता का अर्थ समझाना ठीक ऐसा ही है जैसे रेगिस्तान में खेती करना। भारतीय समाज के अंदर तक जड़ें जमा चुकी धार्मिक संकीर्णता के दर्शन हालिया विवाद,जो आने वाली फिल्म पदमावती से संबंधित है,में हो जाते हैं। किसी भी विषय पर बिना विषय को समझे अपनी प्रतिक्रिया देना अपनी अल्पबुद्धि का परिचय देना है,जोकि वर्तमान में हो रहा है। इस फ़िल्म को रिलीज़ होने से रोकने से संबंधित याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह बोलकर विचार नही किया कि यह मामला सेंसर बोर्ड से संबंधित है और सेंसर बोर्ड़ ने इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नही दी है। जिस विषय पर अभी सेंसर बोर्ड तक का रूख स्पष्ट नही हो सका है उस विषय पर किस आधार पर विरोधी तत्त्वों ने यह मान लिया कि यह फ़िल्म जायसी के अमर महाकाव्य 'पद्मावत' की नायिका पद्मावती के साथ न्याय  करती नही दिखती।  लेकिन एक बात मेरी समझ से परे है वह यह कि कुछ फिल्मों का विरोध यह बोलकर किया जाता है कि ये फिल्में इतिहास के साथ  समुचित न्याय नही करती है लेकिन जब पाठ्यपुस्तकों में हल्द...