श्मशानों को अशुभ मानने की भ्रांति पर एक करारी चोट

आज दैनिक जागरण में छपी एक न्यूज़ जिसमें गुजरात स्थित गाँव तलगाजराड़ा मे नवविवाहित जोड़े ने श्मशान घाट में शादी के फेरे लिए,ने जहाँ मेरे अज्ञान की पुस्तक के एक अध्याय को समाप्त किया, वहीं अंधविश्वास विरोधी अस्त्र के रूप में यह समाचार मेरे हाथों में आ गया। श्मशान को अशुभ या खराब मानने की भ्रांति सदियों से भारतीयों के मन मे अपनी पकड़ जमाये बैठी है जबकि हमको मालूम है जीवन का अटल सत्य मृत्यु है। जब पैदा होने वाले अस्पताल ,घर या अन्य स्थान को हम अशुभ नही मानते तो श्मशान ,जहाँ अटल सत्य विद्यमान है, को किस आधार पर अशुभ होने की संज्ञा दे देते है। श्मशानों को भूतों का डेरा मानने वाले बच्चों के मन से से यह भ्रांति तब ही दूर की जा सकेगी जब उनका जन्मदिन व युवा होने पर उनके विवाह श्मशान घाटों को पवित्र स्थल मानकर उन्हीं में सम्पन्न कराए जाएं। साथ ही बच्चों को बताया जाए कि श्मशान स्थल कोई भय पैदा करने की जगह नही वरन शांति का वह स्थान है जहाँ मनुष्य को अपने जीवन के अटल सत्य के दर्शन होते है।