शिक्षा की खस्ता हालत

हाल ही में शिक्षा पर आयी ASER की रिपोर्ट भारतीय शिक्षा की खामियों पर चर्चा करने के लिए मज़बूर करती दिखती है। यह रिपोर्ट प्राथमिक शिक्षा पर प्रकाश डालती है और इसके प्रकाशित आंकड़े भारत के भविष्य के लिए शुभ संकेतों की परिभाषा की परिधि से बाहर है। हालांकि ये रिपोर्ट प्राथमिक शिक्षा पर आधारित है लेकिन शिक्षा किसी भी स्तर पर सही नही कही जा सकती है और उसी का परिणाम है कि आज का ग्रेजुएट अपनी शिक्षा के स्तर के रोजगार की आवश्यक शर्तों पर खरा नही उतर पा रहा है। हालत इस हद तक खराब है कि पीएचडी धारक एक क्लर्क की जॉब पाने के लिए संघर्षरत है। इसका एक कारण यह हो सकता है कि भारतीय शिक्षा व्यवाहारिक न होकर सैद्धांतिक ज्यादा है जोकि रोजगार की शर्तों को पूरा नही कर पाती। इसलिए भारत मे एक कहावत प्रचलित है कि'ये सब किताबी बातें है'। इन्ही किताबी बातों के कारण एक शिक्षित युवा रोजगार के लिए भटकता है।19वी सदी का पाठ्यक्रम 21वी सदी में पढ़ाकर 21वी सदी की मांगों को पूरा की चाहत रखना एक तरह रेगिस्तान में धान उगाने के विचार की तरह कही जा सकती है। इसके अतिरिक्त भारतीय शिक्षा 'how to think' ...