रिश्ते को ढ़ोने से बेहतर है उसे उतार फैंकना

भारतीय संस्कृति रिश्तों को कुछ ज्यादा ही अहमियत देती है।इसका कारण व प्रभाव सयुंक्त परिवार कहे जा सकते हैं। पति-पत्नी को जीवनभर का साथी कहा जाता है। माता-पिता पर बच्चों के लालन-पालन, शिक्षा आदि का दायित्व डाला जाता है। बदले में बच्चों से यह आशा की जाती है कि वे बुढ़ापे में अपने माता-पिता का सहारा बनेंगे। बहन-भाई अपने सुख- दुख को आपस में बांटकर आपस मे विश्वास की नींव को मजबूत करते हैं। इसके बाद आते है रिश्तेदार,जो हमारी कठिन परिस्थितियों में कंधे से कंधा मिलाकर चलते है। रिश्ते एक विश्वास पर टिके होते है। जब तक वह विश्वास कायम है,आपका रिश्ता कायम है। अगर विश्वास में किसी कारणवश कोई कमी आती है तो उसकी पूर्ति करना मुश्किल हो जाता है। और अगर आप अपने रिश्ते के बीच विश्वास को दोबारा से कायम करना चाहते है लेकिन दूसरा सदस्य इसके लिए तैयार नही है तो यकीन मानिए आपको बहुत गिल्टी फील होगा, जो आपको यह ही याद दिलाएगा की मुझे विश्वास नही तोड़ना चाहिए था। अब अगर ये रिश्ते अपनी निर्धारित सीमा में रहकर अपना निर्वहन कर...