''बुरी नहीं है वेश्यावृति, अगर जबरन नहीं है तो''

कल मैं सआदत हसन मंटो के बारे में एक किताब पढ़ रहा था। जिसमे उनके लेख व कुछ कहानियां थी। इसी क़िताब में उनके 'इस्मतफरोशी' नामक लेख ने मेरे दिमाग को झकझोरने वाला काम किया। वेश्यावृत्ति के प्रति इस लेख ने मुझे फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया। जिस तरह से ओशो की किताब ‛संभोग से समाधि की ओर’ ने सेक्स के प्रति मेरी मानसिकता पर मुझे सवाल उठाने के लिए मजबूर कर दिया था, ठीक ऐसे ही इस लेख ने यह काम ‛वेश्यावृत्ति’ को लेकर किया। मेरी सलाह है कि जब भी आपको समय मिले तो कम से कम एक बार इस लेख को अवश्य पढ़ें। मेरी तरह बहुत से लोग यही मानते होंगे कि वेश्यावृत्ति समाज के ऊपर एक काला धब्बा है जो छुटाए नही छूटता। वेश्याओं व वेश्यावृत्ति पर हम बात ही नहीं करना चाहते हैं। ऐसे बर्ताव करते हैं जैसे इनका कोई वजूद ही नही हैं। लेकिन वजूद तो है भाई। हमेशा से रहा है और हमेशा रहेगा। हमारे बात न करने से यह मुद्दा दब नही जायेगा। मंटो ने अपनी ज्यादतर कहानियों में वेश्याओं के बारे में लिखा। उस सच्चाई को दर्शाया जिस पर हम बात करने से मुह फेर लेते है। जिसको हम बुरा मानते हैं। यहीं कारण है कि समाज की इस का...