असली सफलता का पैमाना दूसरे से तुलना नहीं बल्कि आत्मसंतुष्टि होनी चाहिए

सामान्यतः अपने आप को विकास के चरम बिंदु पर ले जाने के लिए हम तुलना शब्द का प्रयोग करते हैं। तुलना करके हम जान पाते है कि हमसे कहां गलतियां हुईं और कहाँ हमने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मेरे अनुसार अगर हमें अपनी तुलना अपने आप से करनी हो तो तुलना करना एक सर्वश्रेष्ठ कदम है लेकिन बात जब अपनी तुलना दुसरों से करने की आती है तो तुलना की परिभाषा मेरे अनुसार अपना अर्थ खोने लगती है। प्रायः ज्यातर लोगों से अपने अभिभावकों से यह जरूर सुना होगा कि अमुक के लड़के को देखों...वह कहाँ से कहाँ पहुंच गया और तुम यहीं पड़े रहना। अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी और एक अच्छा पारिवारिक जीवन यही सब सफलता के पैमाने बने हुए हैं। अगर कोई व्यक्ति अशिक्षित है या प्रतिष्ठित जॉब नही रखता या पारिवारिक जीवन सुखी नहीं है तो वह लोगों की नजरों में एक असफल इंसान घोषित हो जाता है जोकि सही पैमाना नहीं है। यह जरूरी नही कि प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा में ही रूचि दिखाए।एक खिलाड़ी कम शिक्षित हो सकता है, एक शिक्षित व्यक्ति को खेल में अरुचि हो सकती है, एक पेशेवर इंसान अपने पेशे में सफल हो सकता है लेकिन दूसरे क्षेत्र में असफल साबित हो ...