असली सफलता का पैमाना दूसरे से तुलना नहीं बल्कि आत्मसंतुष्टि होनी चाहिए

सामान्यतः अपने आप को विकास के चरम बिंदु पर ले जाने के लिए हम तुलना शब्द का प्रयोग करते हैं। तुलना करके हम जान पाते है कि हमसे कहां गलतियां हुईं और कहाँ हमने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। मेरे अनुसार अगर हमें अपनी तुलना अपने आप से करनी हो तो तुलना करना एक सर्वश्रेष्ठ कदम है लेकिन बात जब अपनी तुलना दुसरों से करने की आती है तो तुलना की परिभाषा मेरे अनुसार अपना अर्थ खोने लगती है।

प्रायः ज्यातर लोगों से अपने अभिभावकों से यह जरूर सुना होगा कि अमुक के लड़के को देखों...वह कहाँ से कहाँ पहुंच गया और तुम यहीं पड़े रहना। अच्छी शिक्षा, अच्छी नौकरी और एक अच्छा पारिवारिक जीवन यही सब सफलता के पैमाने बने हुए हैं। अगर कोई व्यक्ति अशिक्षित है या प्रतिष्ठित जॉब नही रखता या पारिवारिक जीवन सुखी नहीं है तो वह लोगों की नजरों में एक असफल इंसान घोषित हो जाता है जोकि सही पैमाना नहीं है।

यह जरूरी नही कि प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा में ही रूचि दिखाए।एक खिलाड़ी कम शिक्षित हो सकता है, एक शिक्षित व्यक्ति को खेल में अरुचि हो सकती है, एक पेशेवर इंसान अपने पेशे में सफल हो सकता है लेकिन दूसरे क्षेत्र में असफल साबित हो सकता है, एक अशिक्षित किसान को कृषि व मौसम की अच्छी जानकारी हो सकती है, एक आदिवासी वन परिवेश को अन्य लोगों की तुलना में अच्छी तरह से समझ सकता है। तो किस आधार पर हमने यह तय कर लिया कि एक शिक्षित होना ही सफलता है।

इसके अलावा प्रतिष्ठित जॉब पाना सराहनीय अवश्य है लेकिन सफलता का पैमाना नही कह सकते, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति एक अपना अनोखा हुनर रखता है, उस हुनर का वह मास्टर हो सकता है, उस हुनर के सहारे वह प्रतिष्ठित व्यक्ति बन सकता है। इसलिए डॉक्टर, वकील, जज, इंजीनियर, व सिविल सर्वेन्ट बनना ही सफलता का पैमाना नहीं है। सबको अपनी पसंद के क्षेत्र में जाने का अधिकार है और उसको जाना भी चाहिए। उस पर पाबंदी लगाने का मतलब है कि एक हुनरबाज को पैदा होने से पहले ही आपने उसे मार दिया।

तीसरा पैमाना हमने बना रखा है पारिवारिक सबंध। लेकिन जरूरी नही प्रत्येक व्यक्ति शादी ही करे। बहुत से प्रतिष्ठित हस्तियों ने शादी करने को अपनी प्राथमिकता नहीं बनाया।आपने अगर गौर किया हो तो देखा होगा कि अगर आपके  मित्र आपसे मिलने आते हैं तो बातों ही बातों में आपसे यह अवश्य जानने का प्रयास अवश्य करेंगें कि आप किसी रिलेशनशिप में हैं या नहीं। भारतीयों के बारें में यह कहा भी जाता है कि "भारतीयों के लिए राजनीति और सेक्स हमेशा से ही प्रिय रहे हैं। इनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा किसी भी विषय पर शुरू हुई चर्चा का इन्ही दो विषयों पर समाप्त होने से लगाया जा सकता है।

कहने का सार यह है कि किसी दूसरे के द्वारा तय किये गए पैमाने पर मिली सफलता, सफलता नही है। सफलता वह है जो आपको आत्मसंतुष्टि दे, खुशी दे और आपको विकास के मार्ग पर ले जाएं। इसलिए अगर तुलना भी करनी है तो अपनी तुलना अपने आप से करिये, किसी और से नही।

तुलना करना दूसरे अर्थो में इसलिए भी गलत है कि हम किसी के बारें में जानते ही कितना है। हम उतना ही जानते है, जितना वह हमें अपने बारे में जानने दे रहा है। हो सकता है वह व्यक्ति अपनी सफलता से खुश ही न हो, दवाब में आकर वह उस क्षेत्र में गया हो। तो जब हम जानते ही नहीं है तो तुलना करें ही क्यों? क्या सिर्फ दुखी होने के लिए?

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