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भारत में पशुपालन कैसा है?

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अक्सर वीगन बनने वाले लोग यूट्यूब पर डेयरी फार्म्स में होने वाले पशुओं पर अत्याचार की विडियोज देख कर वीगन बन जाते हैं। उन्हे आज मैं पशुपालन के दूसरे पक्ष से रूबरू कराना चाहता हूं। डेयरी फार्म्स यूरोपीय देशों में ज्यादा पाए जाते हैं क्योंकि वहां पशुपालन करना उद्योग है ना कि जरूरत। भारत में भी डेयरी फार्म्स मिलते हैं लेकिन इनका योगदान दुग्ध उत्पादन में बहुत कम है। भारत में ज्यादातर पशुपालक छोटे किसान हैं जो किसानी के साथ - साथ कुछ भैंस और गाय पाल लेते हैं। उनका कुछ दूध वे घर में प्रयोग लाते हैं और बाकी को बेचकर घर का खर्चा चलाते हैं। कृषि की उपज से हर महीने इनकम नही होती है इसलिए भैंस के दूध को बेचकर वे अपनी गृहस्थी चलाते हैं। इसलिए भारत में पशुपालन व्यवसाय कम, जरूरत ज्यादा है। इन किसानों के घरों में दुग्ध उत्पादन के लिए पशुओं पर अत्याचार नही होता है। वे इनको पशु मानकर नही अपने घर का सदस्य मानकर पालते हैं। इनके दुख में खुद दुखी होते हैं और अगर बीमारी से किसी पशु की मृत्यु हो जाए तो खुद भी रोते हैं। मरने पर इनका अंतिम संस्कार पूरे आदर के साथ किया जाता है।  दोनों टाइम पशुओं को पानी और ख...

पिता के अंदर एक बच्चा

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अक्सर हमारे अंदर पिता की छवि सुपरमैन की तरह होती है। हम निश्चित होते हैं कि अगर कुछ समस्या हुई तो पापा संभाल लेंगे और वे संभाल भी लेते हैं। हमारी पीढ़ी में बाप और बेटे के बीच ज्यादातर बातचीत मां के जरिए होती है। अगर कभी आमने - सामने भी बातें हुईं तो वे सामाजिक, राजनीतिक, और धार्मिक विषयों पर ही अटक रह जाती हैं। कभी उनके मनोभावों को जानने का मौका ही नही मिलता। बेटियां ज्यादा नजदीक होती हैं बाप के, बेटों की तुलना में। हर पिता के अंदर पितृसत्तात्मक लक्षण होते हैं, जिनकी वजह से बच्चों को वह अपने दुश्मन लगते हैं। लेकिन परिवार के प्रति उनका प्रेम प्रथम होता है, सामाजिक नियम द्वितीय। कभी - कभी पिता सुरक्षा देने के भाव में बच्चों की स्वतंत्रता का गला घोट देते हैं। लेकिन यहां उनकी नीति गलत हो सकती है, नियत नही। एक समय ऐसा आयेगा कि स्वतंत्रता तो तुम्हे मिल जायेगी लेकिन तब वह स्वतंत्रता भी खलेगी क्योंकि उस समय तुम्हे कोई टोकने वाला ही नही होगा। पिता बाहर से कठोर मालूम चलते हैं लेकिन मुश्किल वक्त में उनके अंदर का बच्चा निकल आता है जो कठोर नही, बिल्कुल कोमल है। जीवन में कुछ वक्त ऐसे आते हैं जब पिता...

विचार : सबसे महत्वपूर्ण

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विचारों को मैं सबसे महत्वपूर्ण मानता हूं। हर व्यक्ति इन्हीं के सहारे अपनी पूरी जिंदगी काट देता है। विचारों की सबसे अच्छी और बुरी बात यही है कि इनमें बदलाव कभी भी अपनी इच्छानुसार किया जा सकता है। ये विचार किसी की जिंदगी को आसान और किसी की जिंदगी को मुश्किल बना देते हैं। सब विचारों का ही तो खेल है। एक व्यक्ति जो अपनी जाति को अपनी शान मानता है, अगर उसकी बेटी जाति के बाहर वाले लड़के से शादी करने लगे तो वह उसकी ऑनर किलिंग कर देगा, जबकि जाति नहीं मानने वाला व्यक्ति राजी खुशी अपनी बेटी का ब्याह किसी भी जाति के व्यक्ति से करा देगा। सामंती सोच का व्यक्ति पूरे परिवार पर अपना अधिकार और स्वामित्व जमाता है जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करने वाला व्यक्ति अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलता है। एक पितृसत्तू के घर में उसकी स्त्री और बच्चे हमेशा दुखी रहेंगे जबकि समानतावादी सोच रखने वाले व्यक्ति के घर में दोनों हमेशा सुखी रहेंगे। एक व्यक्ति विवाह करता है, उसके बाद बच्चे पैदा करता है, फिर उन्हें अपने मन मुताबिक चलाने की कोशिश करता है और जब वह उसके कहे में नहीं चलते तो पूरे जीवन दुखी होता रहता है, ...

ब्रह्मांड में हमारा सूक्ष्म आकार

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ब्रह्मांड इतना विस्तृत है कि इसका अनुमान तक नहीं लग सका है अभी तक। फिर भी कहा जाता है कि इसमें अरबों गैलेक्सी हैं, हर गैलेक्सी में अरबों तारे और इतने ही ग्रह हैं। हमारे सौरमंडल में ही आठ ग्रह हैं। उनमें से एक ग्रह पृथ्वी पर हम रहते हैं। इस प्रथ्वी पर करीब 200 देश हैं। इन 200 देश में से एक भारत है। भारत में करीब 140 करोड़ जनसंख्या है, उनमें से हम एक हैं। पृथ्वी की उम्र करीब 4.5 अरब वर्ष बताई जाती है। पृथ्वी पर अरबों प्रजातियां हैं, उन सब प्रजातियों में से एक मनुष्य है। मनुष्य का विकास करीब 10 से 20 लाख पूर्व हुआ। इन बीस लाख वर्षों में अरबों मनुष्य इस प्रथ्वी पर आए और गए, कितने हमें याद है? हम इस पूरे ब्रह्मांड की धूल के एक कण बराबर भी नहीं। फिर भी हम अपने आप को इतना महत्वपूर्ण माने बैठे हैं, अपने आप से इतनी अपेक्षाएं लगा लेते हैं और उन अपेक्षाओं के पूरी नहीं होने पर दुखी होते रहते हैं। हमारे होने से ब्रह्मांड नहीं, ब्रह्मांड के होने से हम हैं। जहां आज हम रह रहे हैं या जिस घर में हम रह रहे हैं या जिस खेत को हम जोत रहे हैं, चार पीढ़ी पहले वहां कौन रह रहा था, कौन उस खेत को जोत रहा था, हमें...

पहला वेतन

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हर बेरोजगार गाहे-बगाहे अपनी उस फर्स्ट सैलरी के बारे में सोचता है जो उसे नौकरी लगने पर मिलेगी। वह अपनी उस पहली सैलरी से क्या - क्या करेगा, यही विचार उसे आते रहते हैं।  सोचता है उन रुपयों से घर वालों के लिए गिफ्ट और मिठाई खरीदेगा। मां के लिए साड़ी, पापा के लिए कुर्ता, बहन के लिए सूट और भाई के लिए एक सुंदर सी घड़ी। गिफ्ट्स को देखकर उनके चेहरे पर जो खुशी का भाव आएगा वही उसकी उस तपस्या का फल होगा, जिसे वह वर्षों से कर रहा था। कभी सोचता है कि उन रुपयों से सबसे पहले वह अपनी उधारी चुकाएगा और उन लोगों को शुक्रिया कहेगा जिन्होंने उसे उस वक्त मदद की जब वह कुछ नहीं था। सोचता है उन रुपयों से दोस्तों को पार्टी देगा। उन दोस्तों को जो उसका दूसरा परिवार बने, भूख लगने पर खाना खिलाया, रुपए खत्म होने पर रुपए दिए, पढ़ाई में कॉन्सेप्ट्स क्लियर किए , निराशा के क्षणों में आशा बंधाई और जो असफलता के दिनों में साथ रहे। कभी सोचता है कि वह सबसे पहले एक नया मोबाइल लेगा। अब तक राम - नाम पर चल रहे उस मोबाइल को तिलांजलि देगा जिसकी स्क्रीन टूटी हुई है, वॉल्यूम का बटन काम नहीं कर रहा और कैमरा खराब है। सोचता है अपने ...