वर्तमान युग में धर्म की प्रासंगिता पर उठते सवाल



आज के युग में धर्म का उपयोग व्यक्तिगत रूप में न होकर संस्थागत हो गया है। जिस तरह से मध्य एशिया एवं पश्चिम एशिया में आतंकी संगठनों ने तबाही मचाई हुई है, जिसकी गूंज यूरोप में हो रहे "लोन वुल्फ" हमलों के रूप में भी सुनी जा सकती है, उससे तो यही लगता है कि धर्म का उपयोग किसी अलग ही दिशा में हो रहा है।

अनेकों समुदाय अपने धर्म के कारण ही उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं जिनमें से प्रमुख हैं-बलूच, उइगर, तिब्बती, सहेलवासी, कूर्द, यजीदी, रोहिंग्या, मधेशी आदि।प्रत्येक देश किसी न किसी ऐसी समस्या से ग्रसित है जिसका संबंध धर्म से जूड़ा है। यूरोप के शान्तिप्रिय देश अवैध प्रवासियों की समस्या से ग्रसित है जो धर्म लड़ाई के कारण ही उत्पन्न हुई है।

   भारत में भी अनेक समुदाय के लोग निवास करते हैं तो जाहिर है यहां की स्थिति भी कुछ अच्छी नही होगी और ये आज की समस्या नही है। हमेशा से ही लोगों ने धर्म को कुछ ज्यादा ही तरजीह दी है और उसी का नतीजा है कि धर्म का नाता प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ गया। हम इस तथ्य को प्रकाश में लाने का प्रयास करेंगें की धर्म का उदभव किन हितों की पूर्ति हेतु हुआ था और उसका उपयोग भविष्य में किस रूप में होना चाहए।

    भारत मे सनातन धर्म जिसको आज हिन्दू धर्म बोला जाता है उसका उदभव वैदिक युग में हुआ। जिसमें कुछ प्रभाव हड़प्पा के धर्म का भी है। वैदिक युग में जिन सवालो का जवाब वैदिक लोग नही खोज पाये उनका उन्होंने देवीयकरण कर दिया। जिन कार्यो का उनके जीवन में महत्व था उन कार्यों के लिए एक देवता को प्रतिनिधित्व दे दिया। धीरे-धीरे समय की मांग के अनुरूप धर्म के स्वरूप में भी बदलाव आते गए।बालविवाह, सतीप्रथा, पर्दा प्रथा, जौहर प्रथा, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, अवतारवाद, मूर्तिपूजा, भक्ति, योग, आदि अनेक तत्वों का प्रवेश हिन्दू धर्म में हो गया। लेकिन हमें यह ध्यान रखना है कि ये तत्व समय की मांग के अनुसार आए थे।आज के समय यह स्थिति है कि शाकाहारी, मांसाहारी, आस्तिक, नास्तिक, योगी, कापालिक, कालामुख, नागा, सब हिंदू धर्म के अनुसार अपनी आत्मा की मुक्ति करने के अधिकारी है। अनेकों दर्शनों का समावेश हिन्दू धर्म में है। प्रत्येक दर्शन एक विशेष परिस्थिति की उपज है।


मुस्लिम धर्म का उदभव भी एक समय की ही मांग थी।इस्लाम का उदय सातवीं सदी में अरब प्रायद्वीप में हुआ। इसके अन्तिम नबी मुहम्मद साहब का जन्म 570 इस्वी में मक्का में हुआ था। लगभग 613 इस्वी के आसपास मुहम्मद साहब ने लोगों को अपने ज्ञान का उपदेशा देना आरंभ किया था। इसी घटना का इस्लाम का आरंभ जाता है। हँलांकि इस समय तक इसको एक नए धर्म के रूप में नहीं देखा गया था। परवर्ती वर्षों में मुहम्म्द साहब के अनुयायियों को मक्का के लोगों द्वारा विरोध तथा मुहम्म्द के मदीना प्रस्थान (जिसे हिजरा के नाम से जाना जाता है) से ही इस्लाम को एक धार्मिक सम्प्रदाय माना गया। 

  इस्लाम के उदभव से पहले मक्का में क़बीलों के रूप में जनजातियां रहती थी, जो मूर्तिपूजक थी और व्यापार उनका पेशा था। ये आपस में ही लड़ते रहते थे। इन्ही की स्थिति को सुधारने के लिए मुस्लिम धर्म का आगमन हुआ। आपसी लड़ाइयों को टालने के लिए इनका ध्यान बाहरी क्षेत्रों को जीतने मे लगा दिया। जिसका प्रभाव शायद आज भी सीरिया गृहयुद्ध में देखा जा सकता है। उस समय की मांग के अनुरूप कुरान, शरीयत, हदीश की रचना हुई।

ईसाई धर्म या मसीही धर्म या मसयहयत (christianity) तौहीदी और इबराहीमी धर्मों में से एक धर्म है जिस के मानने वाले ईसाई कहलाते हैं। ईसाई धर्म के पैरोकार ईसा मसीह की तालीमात पर अमल करते हैं। ईसाईओं में बहुत से समुदाय हैं मसलन कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडोक्स, मॉरोनी, एवनजीलक आदि। ईसाई धर्म के अनुसार जीव हत्या, अनावश्यक हरे पेड़ों की कटाई ,किसी को व्यर्थ आघात पहुँचाना, व्यर्थ जल बहाना, आदि पाप है। ईसाई धर्म का उदभाव तब हुआ जब यूरोप में अंधविश्वासों का बोलबाला था, खुद ईसा मसीह को सूली पे चढ़ा दिया गया।
        
सिख धर्म
 (सिखमत और सिखी भी कहा जाता है; पंजाबी: ਸਿੱਖੀ) एक एकेश्वरवादी धर्म है। इस धर्म के अनुयायी कोसिख कहा जाता है। सिखों का धार्मिक ग्रन्थ श्री आदि ग्रंथया ज्ञान गुरु ग्रंथ साहिब है। आमतौर पर सिखों के 10 सतगुरु माने जाते हैं, लेकिन सिखों के धार्मिक ग्रंथ में 6 गुरुओं सहित 30 भगतों की बानी है, जिनकी शिक्षाओं को सिख मार्ग पर चलने के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सिखों के धार्मिक स्थान को गुरुद्वारा कहते हैं। गुरु नानक भी किसी नवीन धर्म की स्थापना करने के इच्छुक नही थे बल्कि वे सामाजिक आडम्बरो का समाधान चाहते थे, जोकि उस समय के सभी सुधारक चाहते थे। ऐसे ही विश्व के सभी धर्मों का उदभव एक समय की मांग अनूरूप हुआ है।  

 अब हमें यह विचार करना है कि विभिन्न धर्मों के लोगो के बीच नफरत के बीज क्यो हैं? हर चीज के दो पक्ष होते है एक नकारात्मक और एक सकारात्मक। लेकिन धर्म के दोनों पक्ष ही सदभावना का ज्ञान देते है। अगर हम यह माने की प्रत्येक धर्म सत्य बोलता है तो तब भी नफरत की शिक्षा कोई सा भी धर्म नही देता। सभी धर्म मानवता, बंधुत्व, प्यार, विश्वास, एकता का संदेश देते है और अगर हम यह माने कि प्रत्येक धर्म झूठ पर आधारित है ,क्योकि प्रत्येक धर्म एक दूसरे से अलग है। अगर हम एक धर्म को सत्य मानते है तो दुसरे धर्म झूठे हो जाते है।और यह भी है कि हम अपने धर्म को सत्य मानकर दूसरे धर्म का औचित्य कैसे झूठला सकते है जबकि खुद हमारे धर्म के बारे मे ही हम निश्चित नही है। प्रत्येक व्यक्ति यह मानता है कि उसके धर्म को छोड़कर सभी धर्म असत्य पर आधारित है। अगर ऐसा है तो सभी धर्म असत्य पर आधारित हुए और अगर सभी धर्म सत्य नही है तो हम आपस में लड़ क्यो रहे है? क्या एक असत्य धर्म के लिए? इन दोनों दृष्टिकोण से आस्तिक एव नास्तिक दोनों की समस्या का समाधान हो जायेगा।


         वर्तमान समय में हमे धर्म को ज्यादा महत्व न देकर मानव कल्याण के विषय में सोचना चाहये। सबको समान अधिकार मिलने चाहिये बिना किसी लैंगिक, धर्म, जाति, नस्ल भेदभाव के। सहयोग, बंधुत्व, भाइचारा, समानता ,नैतिक कर्तव्य, आदि तत्वों की पूर्ति हेतु अगर धर्म अड़चन बनता है तो हमे धर्म त्याग करने में एक पल का भी विचार नही करना चाहए। धर्म का काम लोगों को सही राह दिखाना है ना कि उनको राह से भटकाना। धर्म से ऊपर मानव का दर्जा है और पृथ्वी मानवों के कारण ही पहचानी जाती है।अतः अपनी सोच धार्मिक न बनाकर तार्किक और वैज्ञानिक बनाइये। तभी विश्व आसमाँ की बुलंदियों को छू पायेगा।

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