लोगों की सोच और शासन व प्रशासन की कमी से दंगे की उपज
पिछले अनुभवों से कोई सीख न लेते हुए हरियाणा शासन और प्रशासन उस बेकाबू भीड़ पर काबू पाने में फ़िर से असफल रहा, जो उस संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही है जो उसी के द्वारा दिये गए कर द्वारा अर्जित की गयी है। इस तरह से देखा जाए तो वह खुद अपने ऊपर प्रहार कर रही है।
यह बेकाबू भीड़ शासन और प्रशासन की उन तैयारियों पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है,जो वे पिछले 4-5 दिनों से कर रहे थे। आखिर ऐसी क्या तैयारियां की गई जो दगाँ होने के आशंका होते हुए की गई लेकिन दंगा होने पर अपना असर नही दिखा पायीं। धारा 144 का मतलब भी शायद पुलिस कुछ और ही लगा बैठी। इसी कारण उसने अंधभक्तो की भीड़ उस जिले में इकट्ठा होने दी,जिसमें CBI COURT था।
शासन और प्रशासन की कमी का खामियाजा देश की अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता है। एक तरफ देश को विकसित दिशा की राह में ले जाने के प्रयास हो रहे हैं तो दूसरी और देश के ये दंगे अर्थव्यवस्था को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देते है।
साथ ही भारतीय लोगों की यह सोच समझ से परे है कि एक तरफ तो वह रेपिस्टों के समर्थन में दंगे करती है और दूसरी तरफ रेपिस्टों को फांसी की सजा के लिए सड़को पर भी उतर जाती है। एक तरफ अपराधियों को चुनाव जिताकर विधायक या सांसद बनाती है वही दूसरी तरफ उन्ही विधायक या सांसदों के लिए लोकपाल लाने के लिए धरना देती हैं।
अतः लोगों को अंधभक्ति छोड़ तर्कवाद का रास्ता अपनाना चाहिए। साथ ही शासन व प्रशासन को बिना किसी दवाब के अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए। वही मानवता और भारत के हित में हैं।
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