संविधान के क़ुछ मूलतत्वों की संघर्षरत स्थिति




वर्तमान समय में भारतीय संविधान के कुछ मूल तत्व अपनी पहचान बचाये रखने के लिए संघर्षरत हैं। जिनमें से प्रमुख है धर्मनिरपेक्षता, अनेकता में एकता, अपनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।

 भारत की छवि प्राचीनकाल से ही धर्मनिरपेक्ष देश की रही है इसी कारणवश यहां अनेक धर्मो का जन्म हो सका हैं। लेकिन जिस तरह से वर्तमान में धर्म और राज्य का संबंध आपस में जोड़ा जा रहा है उससे तो यही लगता है कि भारत की छवि ज्यादा दिन तक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में नही रहने वाली है।हाल ही में हो रही घटनाओं से इसका अंदेशा लगाया जा सकता है। कावड़ ला रहे शिवभक्तो द्वारा भारत के तिरँगे का उपयोग देशभक्ति दर्शाने के लिए  किया जाना, देशभक्ति को गौरक्षा से जोड़ना आदि।

भारत को इन सब से बचना चाहए क्योंकि यहाँ अनेक समुदायों के लोग निवास करते हैं। इन घटनाओं से उन समुदायों में असुरक्षा की भावना जागृत होती है, जो देशहित में नहीं। वे भी भारत के नागरिक है, यह देश उनका भी है और उनको भी उतने ही अधिकार मिले हुए हैं जितने बहुसंख्यक समुदाय को।अतः हमें बंधुत्व की राह पकड़नी चाहये न कि नफरत की।

दूसरा मुद्दा उठता है भाषा का। यह सच है कि भारत मे हिंदी भाषा को जानने वालो की संख्या अधिक है। लेकिन हमे यह भी नही भूलना चाहए कि यहाँ अनेक भाषाएं बोली जाती है। अतः हम उनपर हिन्दी नहीं थोप सकते है क्योंकि ये लोकतंत्र है और यहां सबको समान अधिकार प्राप्त है। जैसे किसी हिन्दीभाषी को हिंदी प्यारी है ठीक ऐसे ही अन्य भाषा के जानकार को अपनी भाषा प्यारी है। इस दिशा में भारतीय संविधान का 'अनेकता में एकता' सिद्धान्त हमारी मदद कर सकता है।

अतः किसी भी विषय के प्रति कट्टरता अच्छी नही है। कट्टरता की राह पर चलने से भारत को कुछ प्राप्त नहीं होने वाला सिवाय इसके टुकडो में बिखरने के।

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