आरक्षण व्यवस्था के प्रति नकारात्मक सोच
आरक्षण व्यवस्था को बिना समझें उसके प्रति नकारात्मक राय बना लेना सामान्य वर्ग के लोगों में आम बात है। उनको लगता है कि उनका हक किसी और को दिया जा रहा हैं, जो उनसे ज्यादा योग्य नही हैं। लेकिन समझने वाली बात यह है कि आरक्षण व्यवस्था को लाने के पीछे योग्यता एवँ अयोग्यता को सिद्ध करने की कोई मंशा नही थी। क्योंकि अगर ऐसा होता तो देश को अंग्रेजों से आजाद कराने की जरूरत क्या थी? अंग्रेज भी तो देश चलाने के लिए योग्य थे।
आरक्षण व्यवस्था को इसलिए लाया गया ताकि पिछड़े वर्गों को सामाजिक रूप से समाज की सामान्य धारा में लाया जा सके। अब आप यह कहेंगें कि सामान्य वर्ग के बहुत से परिवारों की आर्थिक स्थिति आरक्षित वर्ग जैसी ही है, इसलिए आरक्षण व्यवस्था उन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
यहाँ ध्यान देने योग्य यह है कि उन आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य परिवारों के साथ दलित शब्द नही जुड़ा है, जो उनको दलित समुदाय से अलग करता है। यह सामाजिक विभेद ही आरक्षण व्यवस्था लाने का कारण है और शायद कारण बना रहेगा।
अब बात आती है कि इसका समाधान क्या है जो दो वर्गों के बीच यह सामाजिक विभेद मिटा दे। एक महाशय द्वारा यह समाधान दिया जाता हैं कि दलित समुदाय उच्च समुदाय में सुधार नही ला सकता और उच्च वर्ग खुद सुधार करेगा नहीं। तो क्यों न दलित समुदाय खुद अपने वर्ग में सुधार लाकर खुद को उच्च वर्ग से श्रेष्ठ साबित कर दे।
लेकिन बात तो वही हुई। अब ब्राह्मण वर्ग श्रेष्ठ है तब दलित वर्ग श्रेष्ठ हो जायेगा। सामाजिक विभेद तो तब भी बना रहेगा, सिर्फ वर्ग बदल जायेगा। इसलिये अन्य समाधान सोचने की आवश्यकता हैं।
वर्ण एवं जाति व्यवस्था मानवनिर्मित हैं, जो प्राचीन काल के लिये प्रासंगिक होंगी लेकिन वर्तमान युग में इसमें सुधार की आवश्यकता है। इसलिए हमें अपनी मानसिक सोच में परिवर्तन कर जाति व्यवस्था से ऊपर उठ कर सोचना है। जिस तरह से प्राचीन काल में विवाह का एक नियम बना था कि विवाह एक गोत्र में नही हो सकता, जो उस समाज के अनुरूप था। ऐसा ही नियम आज बनाया जा सकता है कि विवाह अपनी जाति में नही हो सकता। वर या वधु को किसी अन्य जाति का होना चाहिये और प्रयत्न यह करना चाहिये की विवाह अपनी से नीची जाति में हो।
इससे यह लाभ होगा कि एक जाति के लोग विवाह के द्वारा दूसरी जाति के लोगों को अच्छे से समझ पाएँगे। एक स्थिति ऐसी आयेगी जब जाति व्यवस्था धरातल में समा जायेगी और जब जाति व्यवस्था ही नही रहेगी तो आरक्षण का महत्व ही क्या रह जायेगा? आवश्यकता है बस इस दिशा में सोचने की।
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