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Showing posts from October, 2017

'हमारा क्या लेना देना'

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            अपने कर्तव्यों से आसानी से विमुख होने का सबसे आसान तरीका किसी विषय या व्यक्ति के प्रति यह बोलना कि हमारा क्या लेना देना है। इस समाज में व्याप्त ज्यादातर समस्याओं का समाधान लोग हमारा क्या लेना देना बोलकर ही निकाल लेते है। बहुत सी असुविधाओं को लोग इसलिए झेलते रहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस असुविधा को दूर करना किसी अन्य का काम है।      सड़क दुर्घटनाएं, झगड़े, प्राकृतिक व कृत्रिम आपदाएं, सरकार की असहनीय नीतियां, वैश्विक समस्याएं आदि जैसे अनेक विषयों पर लोग इस वजह से ध्यान देना जरूरी नही समझते क्योंकि उनको लगता है कि उन्हें खुद से संबंधित समस्याओं के प्रति ही चिंतन करना चाहिए ना कि दूसरे लोगों की समस्याओं के प्रति।   लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि अगर लोहे की किसी छड़ का एक सिरा गर्म किया जाता है तो उस छड़ का दूसरा सिरा ठंडा नही रह सकता। हम यह सोचकर चुप नही बैठ सकते कि अमेरिका में उत्सर्जित कार्बन या उत्तर कोरिया-अमेरिका युद्ध हम पर प्रभाव नहीं डालेगा क्योंकि हमारे देश की भौगोलिक दूरी रक्षा कवच का काम करेगी। अमेरिका स...

पटाखे प्रतिबंध पर लोगों का नज़रिया

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      सुप्रीम कोर्ट द्वारा पटाखों पर प्रतिबंध लगाना कुछ लोगों को इस तरह नागवार गुजरा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को अनेक सुझावों द्वारा यह बताया कि प्रदूषण को कैसे नियंत्रण में लाया जाए।दिवाली पर पटाखों को जलाने से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा DELHI- NCR मे पटाखे बेचने पर रोक लगा दी। लेकिन कुछ लोगों ने इस विषय को धार्मिक रंग देकर कुछ अलग ही अलाप छेड़ दिया, जिनमें एक प्रमुख व्यक्ति अलग ही नजर आता है क्योंकि इनके उपन्यासों के पात्र जहा एक तरफ धर्मों के बंधन तोड़ते हुए प्रेम और सदाचार की बात करते है तो वहीं वास्तविक जीवन में इस लेखक पर धार्मिकता हावी हो जाती है,इनका नाम चेतन भगत है। इनके जैसे अन्य ज्ञानी लोग भी धर्म से ऊपर नही उठ पाते।अगर इनका ये हाल है तो सामान्य लोगों से हम यह अपेक्षा कैसे कर सकते है कि ये धार्मिक उन्माद में न उलझकर उदारवाद का रास्ता अपनाएंगे।   हमें यह मालूम होना चाहिए कि विश्व पर सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन का है, जिसके परिप्रेक्ष्य मे पेरिस जलवायु समझौता लाया गया है, जिसका उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन कम कर वैश्विक तापमान को...

संवेदनहीनता की पराकाष्ठा में सोशल मीडिया का योगदान

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         प्रशासन और समाज से कुछ अच्छे की उम्मीद रखने वाला इस पृथ्वी का सामाजिक प्राणी, जिसको मानव कहा जाता है, खुद अच्छा बनने के लिए तैयार नही है। जिसका हालिया उदाहरण मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन के पैदल पुल पर मची भगदड़ से घायल हुए लोगों के साथ की गयी शर्मनाक हरकतों में मिलता है। वहाँ पर एक आदमी  ने घायल औरत की मदद करने की बजाय उसके कंगन चुराने को अहमियत दी, घायल लोगों की मदद की बजाय लोग वीडियो क्लिप बनाने में मशगूल थे और बाकी रही सही कसर उस व्यक्ति ने पूरी कर दी जिसने घायल महिला के साथ अश्लील हरकत की।           पहले भी ऐसे किस्से सुनने को मिले होंगे क्योंकि लोग मानवता का पाठ भूल कर एक संवेदनहीन दुनिया मे जी रहे हैं।आज कहीं भी अगर कुछ भी होता है तो लोग पीड़ित की मदद करने की बजाय उसके साथ हो रही घटना की वीडियो बनाकर उसको सोशल मीडिया पर शेयर कर उसमें अपनी ख़ुशी खोजने का प्रयत्न करते है। इसके अतिरिक्त सबको अपने खुशी के पलों को एन्जॉय करने की बजाय उस पल को कैमरे में कैद करने की जल्दी रहती है ताकि दूसरे लोगों को बताया जा सके कि व...