'हमारा क्या लेना देना'
अपने कर्तव्यों से आसानी से विमुख होने का सबसे आसान तरीका किसी विषय या व्यक्ति के प्रति यह बोलना कि हमारा क्या लेना देना है। इस समाज में व्याप्त ज्यादातर समस्याओं का समाधान लोग हमारा क्या लेना देना बोलकर ही निकाल लेते है। बहुत सी असुविधाओं को लोग इसलिए झेलते रहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि इस असुविधा को दूर करना किसी अन्य का काम है।
सड़क दुर्घटनाएं, झगड़े, प्राकृतिक व कृत्रिम आपदाएं, सरकार की असहनीय नीतियां, वैश्विक समस्याएं आदि जैसे अनेक विषयों पर लोग इस वजह से ध्यान देना जरूरी नही समझते क्योंकि उनको लगता है कि उन्हें खुद से संबंधित समस्याओं के प्रति ही चिंतन करना चाहिए ना कि दूसरे लोगों की समस्याओं के प्रति।
लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि अगर लोहे की किसी छड़ का एक सिरा गर्म किया जाता है तो उस छड़ का दूसरा सिरा ठंडा नही रह सकता। हम यह सोचकर चुप नही बैठ सकते कि अमेरिका में उत्सर्जित कार्बन या उत्तर कोरिया-अमेरिका युद्ध हम पर प्रभाव नहीं डालेगा क्योंकि हमारे देश की भौगोलिक दूरी रक्षा कवच का काम करेगी। अमेरिका से उत्सर्जित कार्बन से गर्म होते वायुमंडल के प्रभाव से अंटार्टिका की पिघली बर्फ भारत के समुंद्रतटीय लोंगो के लिए परेशानी का सबब बन सकती है और कोरियन युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को डांवाडोल कर सकता है और महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि भारत भी इससे अछूता नही रहेगा क्योंकि आज का युग भूमंडलीकरण का है।
ठीक इसी प्रकार किसी के झगड़े, सड़क दुर्घटनाओं, चोरी, महिलाओं से छेड़छाड़ व अन्य सामजिक समस्याओं से हमारा क्या लेना देना बोलकर हम मुँह नही मोड़ सकते क्योंकि ये सब घटनाएं उसी समाज में होती है जिसके हम एक अंग है। या ऐसा सोचिए कि हमारे शरीर के किसी भी एक अंग पर लगी चोट पूरे शरीर पर प्रभाव डालती है। अतः समस्याओं से मुँह मोडने की बजाय उनको सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए।जिसके फलस्वरूप एक समय ऐसा आयेगा जब आपको हमारा क्या लेना देना बोलना नही पड़ेगा।
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