संवेदनहीनता की पराकाष्ठा में सोशल मीडिया का योगदान

        
प्रशासन और समाज से कुछ अच्छे की उम्मीद रखने वाला इस पृथ्वी का सामाजिक प्राणी, जिसको मानव कहा जाता है, खुद अच्छा बनने के लिए तैयार नही है। जिसका हालिया उदाहरण मुंबई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन के पैदल पुल पर मची भगदड़ से घायल हुए लोगों के साथ की गयी शर्मनाक हरकतों में मिलता है। वहाँ पर एक आदमी  ने घायल औरत की मदद करने की बजाय उसके कंगन चुराने को अहमियत दी, घायल लोगों की मदद की बजाय लोग वीडियो क्लिप बनाने में मशगूल थे और बाकी रही सही कसर उस व्यक्ति ने पूरी कर दी जिसने घायल महिला के साथ अश्लील हरकत की।
          पहले भी ऐसे किस्से सुनने को मिले होंगे क्योंकि लोग मानवता का पाठ भूल कर एक संवेदनहीन दुनिया मे जी रहे हैं।आज कहीं भी अगर कुछ भी होता है तो लोग पीड़ित की मदद करने की बजाय उसके साथ हो रही घटना की वीडियो बनाकर उसको सोशल मीडिया पर शेयर कर उसमें अपनी ख़ुशी खोजने का प्रयत्न करते है। इसके अतिरिक्त सबको अपने खुशी के पलों को एन्जॉय करने की बजाय उस पल को कैमरे में कैद करने की जल्दी रहती है ताकि दूसरे लोगों को बताया जा सके कि वे उनसे अच्छी जिंदगी जी रहे है। हमें खुद से प्रश्न करना चाहए कि हम किसके लिए जी रहे है? अपने लिए या दूसरों को नीचा दिखाने के लिए? अभी कुछ दिनों पहले ब्लू व्हेल के गेम ने अपना आतंक मचाया था जिसकी गिरफ्त में ज्यादातर छोटे बच्चे आये। लेकिन क्यों? क्योंकि उनके पास कोई ऐसा नही था जिससे वे अपनी मन कि भावनाओ को व्यक्त कर सके और अपना मानसिक तनाव कम कर सके। 

        हमें नही भूलना चाहिए कि सोशल मीडिया मानवीय संवेदनाओं के सीने पर चढ़कर अपनी जगह बनाती है। इसका प्रयोग दुरुप्रयोग बदल गया है। कही ऐसा न हो, जो मानव रोबोट तकनीक को इसलिए लाने को मना करता है कि उसमें मानवीय संवेदनाएं नही होती, रोबोट तकनीक की इस सीमा के कारण वह खुद न रोबोट बन जाये। अतः सोशल मीडिया का प्रयोग इतना नही होना चाहिये कि वह मानव के अंदर की मानवता को ही नष्ट करने पर तुल जाये।एक सामाजिक प्राणी बनिए और सामाजिक वही होता है जो समाज से कटकर नही उससे जुड़कर रहता है।

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