एक अनसुलझी पहेली


                  16000 गोपियों के साथ रासलीला करने का लक्ष्य रखने वाला व स्वयं को भगवान कृष्ण का अवतार बताने वाला कथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित का नाम, जो आश्रम में पड़े छापे के बाद वर्तमान में काफी चर्चित नाम बन चुका है, उस सूची में दर्ज हो गया जो जनता के धार्मिक विश्वास के साथ खिलवाड़ करने वाले बाबाओं के नाम से भरने की कगार पर है।
                 
लेकिन सोचने योग्य यह विषय है कि आसाराम बापू, निर्मल बाबा, रामपाल, राम रहीम जैसे अनेक पाखंडियों के नाम प्रत्येक वर्ष उजागर होते ही रहते है लेकिन इनके प्रति जनता के विश्वास में शायद ही कोई कमी आती है। इस सत्य की परख करने के लिए आपको सुबह टीवी ऑन करना पड़ेगा, जहाँ आस्था से संबंधित चैनलो पर भगवान का गुणगान करते लाखों की संख्या में भक्तों के दर्शन हो जाएंगे। आश्चर्य इस बात से होता है कि भारत में प्रत्येक परिवार किसी न किसी भगवान को अवश्य ही मानता है और शायद कोई भी भगवान गलत काम करने की प्रेरणा नही देता, तो फ़िर अपराध बढ़ क्यों रहे है। क्योंकि सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि धार्मिकता नैतिकता को बढ़ावा देती है और नैतिकता अपराध करने से रोकती है।


   जब धार्मिकता अपराधों की संख्या को घटाने की बजाय बढ़ा रही है तो शायद हमें ऐसी धार्मिकता की जरूरत नही होनी चाहिए। हमारा सविंधान भी धर्म के विषय मे कुछ ज्यादा ही उदार हो गया है, जो प्रत्येक को अपने धार्मिक विश्वास के साथ चलने की आजादी देता है। हालांकि धर्म एक व्यक्तिगत मामला है लेकिन जब वह सामाजिक समस्याओं को जन्म देने लगे तो वह व्यक्तिगत नही रह जाता। सती प्रथा, देवदासी प्रथा, विधवा विवाह निषेध, जैसी सामाजिक कुप्रथाओं का जन्म धर्म के गर्भ से ही हुआ था और जब इनको समाप्त किया गया तो धर्म के रखवालो ने अपने बेतुके तर्कों से इनको जारी रखने का अनुरोध किया, ठीक ऐसा ही तब देखने को मिला जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक़ को अवैध घोषित किया।

    अतः अगर लोगों का धार्मिक अंधविश्वास समाज पर कुप्रभाव छोड़ने लगे तो सरकार को ऐसे अंधविश्वास को दूर करने हेतु कानून बनाने से हिचकना नही चाहिए। कर्नाटक विधानसभा द्वारा 'अमानवीय प्रथाओं और काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन विधेयक,2017' को दी गयी मंजूरी को इस दिशा में एक सराहनीय कदम माना जा सकता है।

   अगर भारतीय प्रत्येक विषय को तर्क की कसौटी पर कसने लगे और सरकार भी अंधविश्वास को दूर करने की सदइच्छा रखती हो, तो शायद पाखंडी बाबाओं की सूची में नामों को संख्या बढ़ने की बजाय घटने लगेगी, ऐसी आशा की जा सकती है।
            

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