मेरी राजनीतिक विचारधारा तटस्थ क्यों?
प्रायः प्रत्येक व्यक्ति अपनी एक राजनीतिक विचारधारा रखता है और उसी के अनुसार राजनीतिक दशाओं की व्याख्या करता है। प्रायः यह समझा भी जाता है कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को राजनीतिक रूप से जागरूक रहना चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता लोगों के बीच से ही निकालकर आती है। अतः अगर लोग राजनीतिक रूप से जागरूक नही रहेंगे तो सत्ता का गलत हाथों में जाने का भी डर रहता है जोकि समाज व देश के लिए सही नही है।
लेकिन होता क्या है हम राजनीतिक रूप से जागरूक तो हो जाते है लेकिन इस जागरूकता का आधार ग़लत बना लेते हैं।क्योंकि प्रायः देखा गया है कि लोगों की राजनीतिक दृष्टि निष्पक्ष न होकर किसी एक पार्टी के पक्ष में झुकी हुई होती है। मानकर चलिए कि मैं किसी 'A' नामक पार्टी को सपोर्ट करता हूं तो यह पार्टी जो भी नीति अपनाएगी चाहे वह गलत हो या सही मैं इसके हमेशा समर्थन में रहूंगा और अन्य पार्टियों की नीतियों का विरोध करूंगा। यही आधार प्रत्येक व्यक्ति अपनाए हुए है। उनके सोशल अकाउंट्स उनकी राजनीतिक विचारधारा का बखूबी बखान कर रहे हैं।
मेरा राजनीतिक दृष्टिकोण कुछ लोगों को अखरता है क्योंकि जिसके साथ वे अपने राजनीतिक दृष्टिकोण को सिद्ध करने के लिए बहस करना चाहते थे, वह तो बहस करना ही नहीं चाहता।मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता है कि कौन सी पार्टी सरकार में है और कौन सी विपक्ष में। क्योंकि मेरे अनुसार कोई भी पार्टी न तो पूरी तरह से अच्छी ही है और न ही गलत है। मेरा काम तो इतना है कि उनकी नीतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करूँ। अगर किसी पार्टी की नीति समाज व देश हित मे है तो वह मेरी प्रशंसा की पात्र है और अगर वह गलत नीतियों को अख्तियार करती है तो मैं उसकी आलोचना करने से भी नही चुकता।
मैं किसी भी पार्टी का अंधभक्त नही हूँ। अंधभक्ति हमेशा बुरी होती है; चाहे वह किसी नेता, कलाकार, देश, या ईश्वर के प्रति ही क्यों न हो। हमें तर्क का रास्ता हमेशा खुला रखना चाहिए।अंधभक्ति का रास्ता छोड़ तर्कसंगत राह पकड़ना ही एक शिक्षित व्यक्ति की पहचान है। और ज्यादातर शिक्षित व्यक्ति इसी पहचान से दूर होते जा रहे है। हमें उन्हीं नीतियों का समर्थन करना चाहिए जो देश व समाज के हित में हो, चाहे फिर उन्हें कोई सी भी पार्टी लागू करें, उससे हमें फर्क नही पड़ना चाहिए।
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