“क्यों ज़रूरी है हमारा अपने माता-पिता से सवाल करना”

 
            जब से केंद्र में BJP की सरकार है तब से वामपंथियो ने भारतीय सँविधान खतरे में है, बोलकर अपना विरोध जारी रखा है। सड़कों पर हम डेमोक्रेसी, डेमोक्रेसी चिल्ला रहे है लेकिन खुद हमारे परिवारों में डेमोक्रेसी की जगह सामंतवाद अपनी जड़ जमाये बैठा है और उसका विरोध करना तो दूर हमारा उस दिशा में ध्यान भी नहीं जाता है। 1947 में आजाद होने के बाद हमें सँविधान के जरिए अनेक अधिकारों की प्राप्ति हुई। हमें लगा कि हम आधुनकि युग मे आ पहुँचे है जहां सामंतवाद का कोई चिन्ह नही है लेकिन वास्तविकता इसके उलट है क्योंकि सामंतवाद अब भी अपना अस्तित्व रखता है और इसके दर्शन करने के लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं हैं,सिर्फ अपने परिवार की जीवनशैली पर नजर डालने की जरूरत है।
              हम सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे है कि हमारी स्वतंत्रता खतरे में है लेकिन अपने माँ-बाप का विरोध करने की शक्ति हमारे अंदर नही है। क्योंकि अगर हम विरोध करेंगे तो आदर्श पुत्र/पुत्री कैसे कहलायेंगे। बचपन से ही हमे प्रश्न करने पर डाँट- फटकार लगती है और बोला जाता है कि जैसा हम बोलते है वैसा करो, कोई सवाल नही। क्योंकि उन प्रश्नों को उत्तर तो उनको भी नहीं पता क्योंकि उनके परिजनों ने भी तो उनके साथ ऐसा ही व्यवहार किया था और उसका बदला वे लोग अब अपने बच्चों से ही तो लेंगे। हमें श्रवण कुमार व राम जैसा बनने की शिक्षा दी जाती है। बॉलीवुड में आपको बहुत सी ऐसी मूवी देखने को मिलेंगी जो आदर्श परिवार पर आधारित है जैसे- बागवान, सूर्यवंशम, अपने तो अपने होते हैं आदि। आदर्श परिवार से तात्पर्य है जहां पुत्र/पुत्री अपने माँ-बाप के खिलाफ नही बोलते और पत्नी एक पतिव्रता नारी होती है, वह अपने पति के फैसले के खिलाफ नही बोल सकती है। जो बच्चे अपने माँ- बाप से इत्तेफाक नहीं रखते है उनको 'बिगड़ैल बच्चा' की संज्ञा दे जाती है। यह रोना शुरू कर देते है कि हमने पुराने जन्म में पता नही कौन से बुरे कर्म किये थे जो यह औलाद देखने को मिली है, जो हमारा कहना ही नही मानती है। इसी का परिणाम है कि ज्यादातर नवदंपति के बीच झगड़े की वजह उनका परिवार ही होता है। “लड़के की वाइफ बोलती है कि उसको अलग रहना है और लड़के के परिवार वाले बोलते है कि इसी दिन के लिए क्या तुझे पाल पोसकर बड़ा किया था और इतना कुछ तेरे लिए इसीलिए ही किया था कि जब कमाने का समय आएगा तो तू हमसे अलग हो जाएगा।”  कहने का मतलब यह है कि अगर आपका जन्म एक सामान्य भारतीय परिवार में हो जाता है तो आपके विचारों का कोई मूल्य नही है। अपने विचारों को मूल्य देने के लिए आपको अपने परिवार से बगावत करनी होगी जोकि सामान्यतः देखने को नही मिलता है।
             इस पारिवारिक संस्था का सबसे बड़ा दोष यह है कि हमारा नाम, जाति, धर्म व सोच सभी कुछ यही संस्था निर्धारित करती है। एक तरह से देखा जाए तो जन्म होते हो हमारे ब्रेन वाश करनी की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और यह तब तक चलेगी जब तक आप यह रोकना नही चाहोगे और इसे रोकने के लिए आपको बचपन से जड़ जमाए हुए सिद्धान्तों पर कुठाराघात करना होगा,जिसके लिए आपको पढ़ना पड़ेगा। सामान्यतः ज्यादातर लोगों की रुचि पढ़ने में नहीं होती है तो इसका परिणाम यह होता है कि जिन विचारो को बचपन मे हमारे दिमाग मे उतारा गया था उन्हीं के साथ हम बड़े होते है और मर जाते हैं। देखा जाए तो हम होते हुए भी हम नही होते क्योंकि हमारा तो कुछ है ही नही, जो है वह सब समाज व परिवार की सोच का दर्पण है।
            किसी विचारक ने कहा है कि जिस बच्चे की अपनी माँ-बाप से बनती है वह देश के लिए Problematic है क्योंकि अगर New Generation के विचार ठीक Old Generation जैसे ही है तो देश की वैचारिक तौर से प्रगति रुक जाती है। यही कारण है कि भारत एक और तो विज्ञान के क्षेत्र में बुलंदियों पर बुलंदिया हासिल कर रहा है लेकिन कुछ सामाजिक क्षेत्रो में ठीक वहीं है जहां मध्यकाल में था। इसलिए विद्रोह का झण्डा बुलंद कीजिये और जिन विषयों पर आपको थोड़ा सा भी संदेह हो, उन पर प्रश्न कीजिए। ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर प्रश्न नहीं किया जा सके।
               आपको कोई श्रवण कुमार बनने की जरूरत नही है। समय के अनुसार अपने आपको बदलिए। गौर से देखोगे तो आपको पता चलेगा कि भारतिय परिजनों के लिए उनके बच्चे एक इन्वेस्टमेंट की तरह होते हैं।एक समय के बाद उनको इस बच्चे पर की गई इन्वेस्टमेंट के बदले रिटर्न भी मिलता है। जब वह रिटर्न नहीं मिलता है तो समाज बोलता है कि “उस  लड़के/लड़की के परिजनों ने उसकी पढ़ाई पर इतना रुपया खर्च किया लेकिन जब कमाने की बारी आई तो अपने माँ- बाप से अलग हो गए, घोर कलयुग आ गया है।” प्रत्येक संबंध चाहे वह किसी भी तरह का हो या किसी के भी बीच हो, किसी न किसी स्वार्थ पर अवश्य टिका होता है। इस दुनिया मे कुछ भी निस्वार्थ नही है। इसीलिए किसी भी चिंता किये बिना अपना जीवन अपने मूल्यों पर जीने की कोशिश कीजिए।ऐसा जीवन जीकर देखिए और विश्वास कीजिए मजा आने वाला है।
                 

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