दिल्ली दंगो का जिम्मेदार कौन?
दिल्ली में पिछले 3 दिनों से चल रहे दंगो में अब तक 21 लोगो की मौत हो चुकी है और करीब 189 लोग घायल हैं। दंगे हों और दुकान, घर, वाहन व पूजा स्थल में आगजनी न हो तो दंगे फ़ीके लगते है। इसलिए ये भी जल रहे हैं। दंगो का दोषारोपण दोनों पक्ष एक - दूसरे पर कर रहे हैं। कोई पुलिस की अकर्मण्यता को दोषी ठहरा रहा है तो कोई सरकार की अकर्मण्यता को। हम यहीं जानने का प्रयास करेंगे कि इन दंगो का दोषी कौन है।
CAA व NRC का विरोध करने वाले करीब ढाई महीने से शाहीन बाग में प्रोटेस्ट कर रहे हैं। प्रोटेस्ट करना इनका मूल अधिकार है। लेकिन उन आम लोगो को भी शांतिपूर्ण जीवन जीने का मूल अधिकार है जिनको इनकी वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इनके प्रोटेस्ट के चलते ROAD BLOCK से लाखो लोगों को रोजाना परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहीं काम जब इन्होंने जाफराबाद में करने का प्रयास किया तो लोगो का गुस्सा फूट पड़ा। शरजील इमाम और वारिस पठान जैसे लोगो ने भी इस गुस्से को बढ़ाने में मदद ही की।
हिन्दू-मुस्लिम, हिंदुस्तान व पाकिस्तान, शाहीन बाग, देशभक्ति, आतंकवादी, जय श्री राम, जय बजरंग बली। ये ऐसे शब्द है जो आपको पिछले कुछ महीनों से रोजाना से ही सुनने को मिलते होंगे। दिल्ली का चुनाव BJP ने इन्ही मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए लड़ा। BJP को सबसे ज्यादा नुकसान अपनी नीतियों से नहीं वरन कपिल मिश्रा व अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं से है। ऐसे नेताओं की वजह से ही BJP ज्यादा बदनाम है। ट्रंप के भारत दौरे की बहुत अच्छे से तैयारी की गई और इस दौरे से भारत को बहुत अपेक्षाएं थी। अमेरिकी राष्ट्रपति का ऐसा स्वागत होगा , किसी ने भी नही सोचा था। लेकिन धन्य हो कपिल मिश्रा जी, जिन्होंने वह सोचा जो किसी ने भी नही सोचा था और उस सोचने का नतीजा आप सबके सामने है और इस नतीजे ने आप सबको सोचने के लिए मजबूर कर दिया।
दंगो के समय पुलिस की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। अग़र दंगा फैलता है तो हर कोई इसके लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराता है। विभूति नारायण राय ने अपनी किताब “सांप्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस” में कहा है, सांप्रदायिक दंगों को प्रशासन की एक बड़ी असफलता के रूप में लिया जाना चाहिए. पुलिस में काम करने वाले लोग उसी समाज से आते हैं जिसमें सांप्रदायिकता के विषाणु पनपते हैं, उनमें वे सब पूर्वग्रह, घृणा, संदेह और भय होते हैं जो उनका समुदाय किसी दूसरे समुदाय के प्रति रखता है. पुलिस में भर्ती होने के बावजूद वे खुद को अपने ‘सहधार्मिकों’ के ‘हम’ में शामिल रखते हैं और दूसरे समुदाय को ‘वे’ मानते रहते हैं. अतः यह अंशतः सत्य है कि दंगे को फैलने में पुलिस का योगदान होता है लेकिन यह पूर्णतः सत्य नहीं है।
पूर्व आईएएस अफ़सर और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर मानते हैं दंगे कभी अपने आप नहीं होते. उनका कहना है, "मैं सामाजिक हिंसा का अध्ययन पिछले कई सालों से कर रहा हूँ और यह बात पक्के तौर से कह सकता हूँ कि दंगे होते नहीं पर करवाए जाते हैं. मैंने बतौर आईएएस कई दंगे देखे हैं. अगर दंगा कुछ घंटों से ज़्यादा चले तो मान लें कि वह प्रशासन की सहमति से चल रहा है."
कहा जाता है कि पुलिस और मीडिया उसी की होती है जिसकी सरकार होती है। अतः पुलिस वही करती है जो सरकार उसको करने के लिए बोलती है। पुलिस केवल सरकार द्वारा दिये गए आदेशों का पालन मात्र करती है। अतः दंगो के फैलने में पुलिस का पूर्णतः योगदान नही होता। सरकार ने इस दंगे को फैलने दिया, इसका मतलब यह हुआ कि सरकार अपनी छवि खुद खराब कर रही है। एक ओर अमेरिकी राष्ट्रपति भारतदर्शन कर रहे थे और दूसरी ओर देश की राजधानी जल रही थी।
अब बात करते है कि दंगों का जिम्मेदार कौन है। इसका उत्तर साधारण सा है। और वह है ‛हम’। हम ही वे लोग है जो जाति, धर्म व क्षेत्रवाद, भाषावाद से ऊपर नही उठे हैं। हमारे नेताओं को हमने ही चुना है। वे लोग हमारी ही विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे उसी समाज का हिस्सा है जिसमे हम रहते हैं। वे वही बोलते हैं जो हम सुनना चाहते हैं। उनको दोष देना बेकार है। हमें अपनेआप को सुधारना है। लेकिन अपने आप को सुधारना कोई नही चाहता है। क्योंकि यह तो मुश्किल है और अपनी समस्याओं के लिए दूसरों पर दोषारोपण करना कहीं अधिक आसान है। और हम आसान रास्ता ही अपनाते है। अपने आप को सुधारने की यात्रा बहुत लंबी है, यह कब समाप्त होगी, किसी को नही पता। समाप्त होगी भी या नही, यह भी कोई नही जानता। जब तक ये जवाब नही मिल जाते तब तक ऐसे दंगो की आदत डाल लीजिए और उसका दोष सरकार , पुलिस व दूसरे धर्मों के लोगों पर लगाते रहिये।
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