असनातनी सम्प्रदाय





600ई.पूर्व में पुरोहितवाद और ब्राहणों द्वारा स्थापित चतुःवर्णीय व्यवस्था के खिलाफ घोर प्रतिक्रिया हुई और उतरी भारत में कई असनातनी सम्प्रदाय उठ खड़े हुए। 
 1.मक्खलिपुत्त गोशाल 
2.पुरन काश्यप 
3.अजित केशकम्बलिन 
4.पाकुध कच्चायन 
5.संजय वेल्लठपुत्त 

मक्खलि गोशाल :- गोशाल महावीर के मित्र और शिष्य थे।इन्होंने आजीवक सम्प्रदाय की स्थापना की थी।इनकी शिक्षा का मूल आधार अक्रियावाद या नियतिवाद था। इनका पुनर्जन्म में विश्वास था। ये भाग्यवादी भी थे। गोशाल का मत था कि संसार की प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित और संचालित होती है। मनुष्य के जीवन पर उनके कर्मों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

पूरन कश्यप :- पुरन काश्यप अक्रियावादी थे। ये बुद्ध के समकालीन थे।इन्होंने नश्वरतावादी सिद्धांत का खण्डन किया। सांख्य दर्शन के विकास में इनके मत का काफी योगदान रहा। इनका विचार था कि चोरी, डकैती, हत्या, झूठ आदि पाप नहीं है और दान, जप, तप, सत्य से किसी प्रकार का पुण्य नहीं होता अर्थात् कर्मों का कोई फल नहीं होता।

अजीत केशकम्बलिन :- अजीत केशकम्बलिन पूर्णतः भौतिकवादी और उच्छेदवादी थे। ये उपनिषदों के ब्रह्मज्ञान के विरोधी थे। इन्होंने आत्मा के अस्तित्व को पूर्णतः नकार दिया। इनके सिद्धांत आगे चलकर भौतिकवादी लोकायत मत के आधार बने। इनका मत था कि अग्नि, जल, वायु और अग्नि से शरीर निर्मित है। मृत्यु के बाद कुछ भी शेष नहीं बचता। पाप-पुण्य, सत्य-असत्य की कल्पना सब झूठी है। लोकायत दर्शन के संस्थापक वृहस्पति माने जाते है। आगे चलकर चार्वाक ने इसे नई उंच्चाई प्रदान की। इस मत के अनुसार "चूँकि संसार में सभी घटनाये अपने स्वभाव के अनुरूप घटित होती है इसलिए व्यक्ति को अपने आनंद के लिए जो इच्छा हो वहीं करना चाहिए। "चार्वाक का प्रसिद्ध वाक्य था-"ऋण लो,घी पियो।"इनका मानना था कि कोई ईश्वर नहीं, आत्मा नहीं, परलोक और पुनर्जन्म नहीं है। हमें इसी लोक में जीवन को सुखी बनाने का प्रयत्न करना चाहिये।

पाकुध कच्चायन:- पाकुध कात्यायन नित्यवादी है और पुनर्जन्म और कर्म को नकारते है। उनके अनुसार सात तत्वों बना है। सुख-दुख और जीवन अनियमित एवं अबाध्य है;इसलिए यदि किसी को काटता और मारता है तो न वह काटा ही गया है और न वह मारा ही गया है।

संजय वेल्लठपुत्त:- ये अनिश्चयवादी अथवा अज्ञेयवादी थे। इन्होंने न तो किसी  मत को माना ही और न किसी मत का खण्डन किया। इनके अनुसार "न यहीं कहा जा सकता है कि परलोक है और न यह कि परलोक नहीं है।" इस मत के द्वारा जीवन सम्बन्धी किसी भी प्रश्न का कोई निश्चित उत्तर नहीं है।

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