अवचेतन मन की शक्ति
The Secret और यह किताब, दोनों इस बात पर जोर देती हैं, कि जो भी तुम पाना चाहते हो उस पर विश्वास रखो, उसके बारे में हर पल सोचो, विश्वास रखने से ही सब मिलेगा।
लेकिन सारे धर्म भी तो ईश्वर के ऊपर विश्वास पर टिके हैं, धर्म को मानने वाला तो सबसे बड़ा विश्वासी होता है। वह अपनी हर समस्या और दुख का निवारण ईश्वर की अनुकम्पा पर छोड़ देता है। अगर इनमे लिखा सच होता तो पूरी दुनिया ही खुशहाल होती, किसी को कोई दुख होता ही नही, सबको सब मिल जाता।
इस किताब का लेखक एक पादरी भी था और इसका प्रभाव किताब में भी देखने को मिलता है। किताब में बीच-बीच में बाइबल में कही बातें लिखी हैं। Prayer पर बहुत जोर दिया गया है। इस बुक को पढ़कर लगता है कि लेखक ने अप्रत्यक्ष रूप से ईसाई धर्म को प्रमोट करने की कोशिश की है।
मैंने ग्रेजुएशन में The Secret पढ़ी थी। इसे पढ़कर मुझे भी ऐसा ही लगा था कि ऐसा सच में होता होगा। तब यह किताब बहुत क्रांतिकारी लगी थी। लेकिन आखिर तक आते-आते यह बुक भी कर्म पर जोर देने लगती है। इसका मानना है कि पहले सोचो, फिर विश्वास करो और जब विश्वास मन में बैठ जाएगा और उसी के बारे में दिन-रात सोचोगे तो फिर उसी दिशा में कर्म भी करने लगोगे और फिर उसका फल भी मिलेगा।
इतना घुमाने की क्या जरूरत थी, कर्मफल का सर्वप्रसिद्ध सिद्धांत तो गीता में पहले से है ही। कर्म ही बलवान है। हालांकि यह कह सकते हैं कि सिर्फ कर्ता का कर्म ही पर्याप्त नहीं होता है। एक व्यक्ति के जीवन को उसके कर्म के अलावा अन्य लोगों के कर्म भी प्रभावित करते हैं।
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