एक विवाहित महिला और एक वेश्या में ज्यादा अंतर नही!

अक्सर हमें यह सुनने को मिलता है कि वेश्यावृत्ति समाज पर कलंक है और वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाएं यह काम मजबूरी में करती हैं। लेकिन इस पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। क्या यह वास्तव में बुरी चीज है? वेश्यावृत्ति अपनाने वाली महिलाएं क्या यह सब मजबूरी में करती हैं? क्या एक विवाहित और वेश्या में अंतर है?

वेश्यावृत्ति समाज के लिए बुरी है या अच्छी, इसके लिए कमेंट बॉक्स में एक लेख का लिंक है, उसे पढ़िए। वह लेख मैंने बहुत समय पहले मंटो के ‛इसमतफरोशी’ नाम के लेख से प्रेरित होकर लिखा था। अतः इसपर यहाँ लिखने का कोई फायदा नही। 

अब आते हैं दूसरे प्रश्न पर। वेश्यावृत्ति अपनाने वाली महिलाएँ क्या यह सब मजबूरी में करती हैं? मैंने वेश्याओं के ऊपर लिखी करीब 3-4 किताबें पढ़ी थी, जिनमे उनके अनुभव लिखे हुए थे। वेश्यावृत्ति करना करीब 2-3 साल तक उनकी मजबूरी हो सकता है। क्योंकि कोठामालिक उनको तब तक नही छोड़ता है जब तक वह अपना रुपया वसूल नही कर लेता, जो उसने उनके बेचने वाले व्यक्ति को उस लड़की को खरीदते समय दिया था। 2-3 साल बाद इन महिलाओं के पास यह ऑप्शन रहता है कि वे अगर चाहे तो इस धंधे से निकल सकती हैं। लेकिन निकलती नही हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। पहला यह कि उन्हें वेश्यावृत्ति के अलावा और कुछ नही आता है। दूसरा कि समाज/घरवाले उन्हें अपनाएंगे नही। तीसरा उन्हें यह सिर्फ एक धंधा लगता है। जिस्म बेचो, बदले में रुपये लो। और इसमें उन्हें कुछ गलत नही लगता है और गलत है भी नही। आखिर हम भी तो अपना कुछ ना कुछ बेच ही रहे हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि वह अपना जिस्म बेच रही है। अगर कोई अपना जिस्म बेचकर आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा है तो इसमें गलत क्या है। आप इंस्टाग्राम खोलकर देखिए। लड़कियां वहाँ अपनी सुंदरता बेच रही हैं। कोई अपना हुस्न बेच रहा है तो कोई अपना श्रम, कोई अपना जिस्म।

अब आते हैं तीसरे प्रश्न पर। क्या एक वेश्या एक विवाहित महिला से ज्यादा अलग है? जवाब होगा नही। भारत मे करीब 70% शादियों में प्रेम होता ही नही। एक विवाहित महिला अपने पति से प्रेम ना होते हुए भी शारीरिक सम्बंध बनाती है। वही एक वेश्या करती है। वह भी तो बिना प्रेम किये ही शारीरिक सम्बन्ध बनाती है। अंतर सिर्फ ठेके और दिहाड़ी का है। विवाहित महिला ठेके पर काम करती है और एक वेश्या दिहाड़ी पर।

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