निर्मला
निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद के द्वारा दहेज़ प्रथा और बेमेल विवाह को केंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास है, जो इलाहबाद की ‘चाँद’ नामक पत्रिका में नवंबर 1925 से दिसंबर 1926 तक प्रकाशित हुआ था. इस उपन्यास में मुख्य पात्र निर्मला नाम की 15 वर्ष की युवती है, जिसका विवाह अधेड़ उम्र के और तीन बच्चों के पिता तोताराम से कर दिया जाता है. यह उपन्यास दहेज़ प्रथा, बेमेल विवाह के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर प्रभावों का चित्रण करता है.
इस उपन्यास में सभी किरदारों को बखूबी वर्णित किया गया है। निर्मला के जीवन को केंद्रित कर इस उपन्यास को लिखा गया है। निर्मला उपन्यास में ज्यादातर किरदारों को मौत हो जाती है। निर्मला का जीवन दुखों के गीत से भरा हुआ है। इतना दुख होने के बावजूद भी हिम्मत रखती है। और जीवन के जहर को पी जाती है। महिलाओं की सहिष्णुता का एक उदाहरण है निर्मला उपन्यास।
मेरा मानना है कि आज कल के जमाने में ऐसी परिस्थिति प्रकट होने पर 21वीं सदी की निर्मला तलाक का रास्ता जरुर चुनती और ऐसे दुखमय जीवन से अच्छा वह अकेली जीवन यापन करती।
Comments
Post a Comment
Thank you for comment