वेश्यावृत्ति सिर्फ एक व्यवसाय है
और इन सब सवालों का वेश्या के पास सिर्फ एक उत्तर होता है कि जो करने आया है वो कर ना। काहे व्योमकेश बन रहा है। तेरे जैसे शरीफ इस दिखावटी दुनिया मे शरीफ़ बने रहते हैं क्योंकि इसके पीछे हम हैं। लेकिन मैं इस पर बहस नही करना चाहता कि वेश्यावृत्ति नैतिक है या अनैतिक क्योंकि इस पर बहुत लिखा जा चुका है। और यह एक ऐसी बहस है जिसका कोई अंत नही। ना ही यह झूठा दिलासा दूँगा कि यह जल्दी खत्म हो जाएगी। वेश्यावृत्ति तो रहेगी, जब तक यह सभ्यता रहेगी।
मेरा सिर्फ यह कहना है कि जरूरी नही कि वेश्यावृत्ति में शामिल सभी महिलाएं अपनी इच्छाविरुद्ध आयी हैं, कुछ अपनी मर्जी से भी इसमें शामिल होती हैं। लेकिन जब तुम उनसे बार-बार ये ही पूछोगे कि आखिर ऐसे क्या मजबूरी थी जो यह धंधा अपनाना पड़ा तो वे भी बोल देती हैं कि भाई, बहुत बड़ी मजबूरी थी, कोई और चारा ही नही था।
वेश्यावृत्ति को महिला की मजबूरी के रूप में ना देखा जाये बल्कि इसे सिर्फ एक कमाई का जरिया माना जाए। कोई अपना श्रम बेचता है तो कोई अपना शरीर। तुमने कैसे मान लिया कि शरीर बेचने वाला गन्दा इंसान है और किसी मजबूरी में ही अपना शरीर बेच रहा है? मान कर चलो एक महिला के पास दो विकल्प हैं। पहला है कि वह पूरे महीने रोज 10 घण्टे अपना श्रम बेचे जिसके लिए उसे 10000 वेतन मिलेगा। दूसरी और विकल्प है कि वह महीने में सिर्फ एक घण्टा अपना शरीर बेचे और 10000 कमाए। और वह कमाई और परिश्रम दोनों को देखते हुए दूसरा विकल्प चुनती है तो इसमें बुराई क्या है! इंस्टा खोलकर देखो, ऐसे लगेगा जैसे हुस्न की मंडी लगी हुई है। वहां भी तो हुस्न का ही दिखावा हो रहा है। हर कोई अपने आप को सबसे ज्यादा सेक्सी दिखाने के लिए बेताब।
एक B.Com पास इंग्लिश बोलते भिखारी से पूछा गया कि इतने पढ़े-लिखे हो फिर भी भीख क्यों मांगते हो? उसने बोला कि भारत मे एक ग्रेजुएट को 10000 की नौकरी मिलती है और मैं भीख मांगने के इस धंधे में हर महीने 30000 कमाता हूं तो फायदा किसमें हुआ? तुझे 10 रुपये देंने हैं तो दे, फालतू ज्ञान मत दे, धंधे की खोटी मत कर।
मेरे कहने का मकसद है कि व्यक्ति को किसी भी धंधे को चुनने की आजादी होनी चाहिए, चाहे वह भीख मांगना या वेश्यावृत्ति ही क्यों ना हो। इन पर मजबूरी का ठप्पा लगाना बंद करो। इन पर तरस मत खाओ, इनको बराबरी का दर्जा दो।
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