ताश के पत्ते

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के संघर्ष पर लिखी गई किताबें डार्क हॉर्स और ट्वेल्थ फेल के बाद यह तीसरी किताब है जो मैंने पढ़ी है। सहज भाषा में लिखी गई यह एक शानदार किताब है। किताब इतनी रोचक है कि बीच में छोड़ने का मन ही नही हुआ और एक ही दिन में पढ़ ली गई। इस किताब में आपको दोस्ती, प्यार, सफलता, असफलता, बेरोजगारी, समाज सबका मिश्रण उचित अनुपात में दिखाई पड़ेगा।

बेरोजगार शब्द कितना चुभता है यह तैयारी करने वाला विद्यार्थी ही समझ सकता है। इस शब्द का ही भय है कि वह पारिवारिक शादी -समारोह में जाने से कतराता है कि कहीं कोई उससे ये ना पूछ ले कि क्या कर रहा है वह आजकल? बेरोजगारों के दर्द को देवी प्रसाद मिश्र ने अपनी लेखनी से बखूबी उकेरा है -

यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल

वह डकैती नहीं डालता
वह तस्करी नहीं करता
वह हत्याएं नहीं करता
वह फ़रेबी वादे नहीं करता
वह देश नहीं चलाता

फिर भी यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है
कि क्या कर रहा है वह आजकल...!!!

इस किताब में कुछ वन लाइनर्स जो मुझे पसंद आए -

ये 'असंभव' शब्द जो हम युवाओं के लिए कभी असंभव था ही नहीं, कु-व्यवस्था का साया पाकर हमारे लिए असंभव हो जाता है। लेकिन वो बेरोज़गार वाली गाली जब मन में कहीं लगती है तो मेहनत, तपस्या और लगन से यह 'असंभव' शब्द भरभरा के ढह जाता है!”

“Govt job की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी से ज्यादा आशावादी इस दुनिया में कोई और नही होता होगा।”

“असफलता अनाथ होती है, सफलता के भाई, बहन, दोस्त, यार और बहुत सारे रिश्ते होते हैं।”

“दुख और अवसाद में सबसे अच्छे मित्र हम खुद होते हैं।”

“घर की औरतों से समझदार शायद ही आदमी कभी हो पाए।”

“कुर्सी और लड़की का बड़ा मारा-मारी है, सबको चाहिए।”

“दुश्मन को बर्बाद करना हो तो उसे सरकारी नौकरी की तैयारी करने के लिए उकसा दो.”

तो निष्कर्ष यही है कि ये किताब निराश नही करेगी। देश में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और बेरोजगारी से जूझते, सरकारी नौकरी पाने के लिए संघर्ष करने वाले लाखों हिन्दुस्तानी युवाओं की कहानी को लेखक ने बड़े ही मार्मिक रूप में चित्रित किया है।

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