Parched


इस मूवी की कहानी गुजरात कच्छ में कहीं दूरदराज बसे एक छोटे से गांव से शुरू होती है। इस सीन को देखकर दर्शक समझ सकते हैं कि अगले करीब दो घंटों में स्क्रीन पर उन्हें क्या दिखाई देगा। गांव की पंचायत गांव की एक नवविवाहिता को अपने पति के घर लौटने का फैसला देती है, पंचायत पीड़ित महिला की कोई बात नहीं सुनती, महिला पति के घर लौटना नहीं चाहती, क्योंकि वहां उसका बूढ़ा ससुर और देवर उसका यौन शोषण करता है। पति किसी दूसरी औरत से लगा हुआ है। वह एक अबॉर्शन भी करवा चुकी है क्योंकि उसे यह ही नही पता होता कि बच्चे का बाप कौन है। वह महिला अपना यह दर्द अपनी मां के साथ भी बांटती है, लेकिन मां भी अपनी बेटी की बात नहीं सुनती। बेशक, इस घटना का फिल्म की स्टोरी से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन यह घटना फिल्म के टेस्ट को जरूर बयां करती है।

 फिल्म इस गांव की चार महिलाओं की है। रानी (तनिष्ठा चटर्जी) की उम्र करीब 32 साल है, एक ऐक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो चुकी है। रानी अब अपने बेटे गुलाब सिंह की शादी करना चाहती है ताकि उसके वीरान घर में बहू आ सके। गुलाब की मर्जी के खिलाफ रानी उसकी शादी कम उम्र की जानकी से करती है। जानकी अभी स्कूल में पढ़ रही है, इस शादी से बचने के लिए जानकी अपने लंबे बाल तक काट लेती है, लेकिन इसके बावजूद जानकी की शादी गुलाब से होती है। शादी के बाद गुलाब अपनी पत्नी को पीटता है, शराबखोरी करता है और वेश्याओं के पास जाता है। रानी चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही। 

रानी की एक सहेली लाजो (राधिका आप्टे) है, लाजो शादी के बाद मां नहीं बन सकी तो उसका शराबी पति उसे बांझ बताकर रोजाना बुरी तरह से पीटता है जबकि वह खुद बांझ है।

 इसी गांव में चल रही एक नाटक मंडली में डांस करने वाली बिजली (सुरवीन चावला) डांस ग्रुप में नाचने के साथ गांव के मर्दों की सेक्स की भूख मिटाने का काम भी करती है। 

रानी, लाजो, बिजली और जानकी को मर्दों से नफरत है, हर राज पुरुष प्रधान समाज में कुचली जा रही इन चारों महिलाओं के इर्दगिर्द घूमती इस कहानी में इन चारों का मकसद पुरुषों की कैद से छुटकारा और उनसे मिलने वाली प्रताड़ना से मुक्ति प्राप्त करना है।

फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत ही तीक्ष्ण कटार की तरह है जो कई सारे मुद्दों की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करती है जैसे बाल विवाह, पंचायती राज, पुरुष प्रधानता और महिलाओं पर अत्याचार. लीना यादव की एक बेहतरीन फिल्म।

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