क्या सरकारी नौकरी युवाओं की जवानी खा रही है?




अक्सर लोगों को कहते हुए सुनता हूं कि युवा सरकारी नौकरी के चक्कर में अपनी जवानी गवां रहे हैं। सरकारी नौकरी में कोई एसएससी की तैयारी कर रहा है, कोई बैंक की, कोई सिविल सर्विस की। आचार्य प्रशांत जैसे लोग कहते हैं कि सरकारी नौकरी को सिर्फ दो साल दो, अगर नही लगे तो आगे बढ़ जाओ। लेकिन उस व्यक्ति के लिए यह कहना आसान है जो आईआईटी, आईआईएम से पढ़ा है और सिविल सर्विस छोड़ बैठ आचार्य बन गया है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उन्हे सब छोड़ आचार्य बन जाने की अनुमति देती है। शायद उन्हें पता नही कि एक वेकेंसी को पूरा होने में तकरीबन 3-4 साल तक लग जाते हैं। दो साल में अगर कोई जॉब पा ले तो धन्य भाग्य उसके।

सालों से सरकारी जॉब की तैयारी में लगे युवा उस पृष्ठभूमि से आते हैं जिसमें पीछे हटने का सवाल नहीं होता है। किसी का बाप मजदूर है तो किसी का किसान। उनके लिए आर या पार का युद्ध होता है। तैयारी छोड़ भी दें तो वे कौन सा अंबानी बन जायेंगे, तब भी उतना ही कमा पाएंगे जितने में बस खर्चा ही चल पाएगा, जिंदगी जैसे - तैसे कटेगी। कम से कम सरकारी नौकरी की तैयारी उन्हे एक आशा तो देती है कि आने वाला कल अच्छा भी हो सकता है। जो युवा तैयारी छोड़ कुछ और करने लगे हैं वे भी कुछ खास नही कर पा रहे हैं जीवन में। इससे अच्छा तो यही है कि तैयारी ही कर ली जाए। सफल नहीं भी हुए तो मन में यह मलाल नहीं रहेगा कि कोशिश ही नही किए थे और बीच में छोड़ भाग गए थे।

क्यों न यह मानकर चला जाए कि कोई शराब, जुए, या आवारागर्दी में जीवन बर्बाद कर रहा है; तो समझ लें कि एक युवा अपना जीवन , जीवन बनाने के लिए झोंक रहा है। या तो इस पार या उस पार। वैसे भी खोने को कुछ है ही क्या एक बेरोजगार के पास। पाने को आसमान है। या तो खाक में मिल जायेंगे, जहां पहले से हैं ही या आसमान में चढ़ जायेंगे। कार्ल मार्क्स ने भी कहा है “तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है और पाने को पूरी दुनिया है…. ”

देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने जीवन में संघर्ष कर रहा है। चाहे वह अमीर हो या गरीब, बेरोजगार हो या नौकरी वाला, महिला हो या पुरुष......; जब संघर्ष करना ही है तो अपनी मनपसंद का किया जाए।

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