क्या सरकारी नौकरी युवाओं की जवानी खा रही है?
सालों से सरकारी जॉब की तैयारी में लगे युवा उस पृष्ठभूमि से आते हैं जिसमें पीछे हटने का सवाल नहीं होता है। किसी का बाप मजदूर है तो किसी का किसान। उनके लिए आर या पार का युद्ध होता है। तैयारी छोड़ भी दें तो वे कौन सा अंबानी बन जायेंगे, तब भी उतना ही कमा पाएंगे जितने में बस खर्चा ही चल पाएगा, जिंदगी जैसे - तैसे कटेगी। कम से कम सरकारी नौकरी की तैयारी उन्हे एक आशा तो देती है कि आने वाला कल अच्छा भी हो सकता है। जो युवा तैयारी छोड़ कुछ और करने लगे हैं वे भी कुछ खास नही कर पा रहे हैं जीवन में। इससे अच्छा तो यही है कि तैयारी ही कर ली जाए। सफल नहीं भी हुए तो मन में यह मलाल नहीं रहेगा कि कोशिश ही नही किए थे और बीच में छोड़ भाग गए थे।
क्यों न यह मानकर चला जाए कि कोई शराब, जुए, या आवारागर्दी में जीवन बर्बाद कर रहा है; तो समझ लें कि एक युवा अपना जीवन , जीवन बनाने के लिए झोंक रहा है। या तो इस पार या उस पार। वैसे भी खोने को कुछ है ही क्या एक बेरोजगार के पास। पाने को आसमान है। या तो खाक में मिल जायेंगे, जहां पहले से हैं ही या आसमान में चढ़ जायेंगे। कार्ल मार्क्स ने भी कहा है “तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है और पाने को पूरी दुनिया है…. ”
देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने जीवन में संघर्ष कर रहा है। चाहे वह अमीर हो या गरीब, बेरोजगार हो या नौकरी वाला, महिला हो या पुरुष......; जब संघर्ष करना ही है तो अपनी मनपसंद का किया जाए।
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