जीवन एक वृत्त है।
अगला कदम होता है देहाती संगीत को छोड़ना। वह वैश्विक गायकों को सुनने लगता है। अपनी भाषा, संगीत, और संस्कृति उसे असभ्य लगने लगती है। साहित्य भी फिर उसे भारत से बाहर का ही भाता है। अपने आप को वह वैश्विक दिखाने के चक्कर में वह अपनी जड़ों से दूर होता जाता है।
लेकिन इतना आसान कहां होता है अपनी जड़ों से दूर जाना। बचपन में सीखा हुआ इतनी आसानी से नहीं भुलाया जा सकता है। जीवन एक वृत्त है। जहां से यात्रा शुरू होती है, वहीं पर खत्म होती है। आखिर में अपनी संस्कृति में ही लौटना पड़ता है। फिर से उसे अपना ही साहित्य अच्छा लगता है, अपनी भाषा सबसे प्यारी लगती है, देहाती संगीत पर ही वह थिरकता है।
कहां जाओगे भागकर! जड़ से तना अलग नहीं हो सकता है। अलग होते ही सूख जाता है।
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