अपने लिए वकील, दूसरों के लिए जज



कहा जाता है कि हर व्यक्ति खुद के लिए वकील और दूसरों के लिए जज होता है। हम अपने गलत को गलत नहीं कहते, बल्कि उसे सही ठहराने के प्रयास में कहते हैं कि तुम्हे मेरा गलत तो दिख गया और जो सामने वाला कर रहा है उसका क्या? अगर सामने वाला गलत कर रहा है तो हम उसी की भाषा में जवाब देकर कैसे सही कर रहे हैं? अगर वह गलत है तो तुम सही कैसे हुए? कभी पूछना खुद से यह प्रश्न।

एक महिला के दारू पीने या व्याभिचार करने पर जब सवाल उठाया जाता है तो वह बोलती है कि जब पुरुष पीते हैं तब तो कुछ नहीं बोलते और आज मैं करने लगी हूं तो मुझ पर सवाल उठाने लगे। जबकि उसको यह नहीं पता कि शराब और व्याभिचार दोनों गलत है, चाहे फिर किसी भी जेंडर का व्यक्ति करें।

महिलाओं से साथ शोषण होता है, उसका विरोध करने की बजाय पावर में आते ही ये खुद पुरुषों का शोषण करने लगती हैं और अपने को जस्टिफाई करते हुए बोलते हैं कि हमारे साथ भी तो ऐसा हुआ था तब तो कुछ नहीं बोले। यह ठीक ऐसा ही है जैसा प्रेमचंद अपने एक उपन्यास में लिखते हैं शोषित भी पावर हाथ में आते ही शोषक बन जाता है। ब्याज पर कर्ज लेने वाला व्यक्ति जो ब्याज देने पर बहुत दुखी होता है और इस महाजनी व्यवस्था को कोसता है लेकिन जब वह धनी बनता है तो खुद ब्याज पर रुपए देने लगता है। वीआईपी सिस्टम का विरोध करने वाले सत्ता में आते ही खुद वीआइपी व्यवस्था का लाभ लेने लगते हैं।

गांधी जी की सिर्फ यही विचारधारा थी कि सामने वाले हिंसक व्यक्ति का उत्तर हम अपनी अहिंसा से देंगे। क्योंकि “आंख के बदले आंख” पूरी दुनिया को अंधा कर देगी। उनके विरोधी इतना ऊंचा नहीं सोच पाने के कारण हमेशा विरोध करते रहे। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो “जैसे को तैसा” नीति में विश्वास नहीं करते और अपनी कथनी और करनी में भेद नहीं रखते। गांधी जी ने जो सोचा, वही बोला और उसी को अमल में लाए। बहुत मजबूत होना पड़ता है गांधी के विचारों पर चलने के लिए। शायद इसीलिए हमने उन्हें महात्मा की श्रेणी में डालकर उनके दिखाए मार्ग से मुक्ति पा ली।


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