स्त्री और पुरुष के प्रेम में अंतर



प्रत्येक प्रेमी युगल के बीच यही शिकायत रहती है कि मेरा पार्टनर मुझे उतना प्रेम नहीं करता जितना मैं करता/करती हूं। अधिकतर समस्याओं की जड़ यही है कि हम सोच लेते हैं कि सामने वाला उतनी ही गहनता से प्रेम करेगा जितनी गहनता से मैं करता हूं। उसके प्रेम करने का तरीका बिल्कुल ऐसा ही होगा जैसा मेरा है। जबकि हम भूल जाते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति अलग है, सबके सोचने का तरीका अलग है, अपनी फिलिंग्स को जाहिर करने का तरीका अलग है,तो प्रेम जाहिर करने का एक सा तरीका कैसे हो सकता है?

हो सकता है कि सामने वाला भी तुम्हें तुमसे ज्यादा प्रेम करता हो लेकिन उसका जाहिर करने का तरीका अलग हो। जैसे कोई व्यक्ति दुख में रोने लगता है, तो कोई मौन हो जाता है, कोई चीखता है। दुख को झेलने के सबके अपने अपने तरीके है। ऐसे ही प्रेम करना का सबका अपना तरीका है।

सामान्यत: प्रेम विपरीतलिंगी से होता है। दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं। स्त्रियां प्रेम अधिक गहनता से कर पाती हैं। वे प्रकृति के अधिक नजदीक हैं। उनमें भावनाओं का आवेश पुरुषों से अधिक होता है। एक छोटी सी बात उन्हे विचलित कर सकती है तो छोटी सी बात उन्हे खुश भी कर सकती है। उनका हृदय पुरुषों के मुकाबले अधिक कोमल है एक पुष्प की भांति। शायद तभी किसी ने कहा भी है कि “प्रेम तो स्त्री होकर ही किया जा सकता है।”


वहीं पुरुष अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखता है या शायद समाज उसे ऐसा बना देता है कि वह अपने आप को जाहिर नही कर पाता है या शायद जिम्मेदारियों के बोझ तले उसका प्रेम दब जाता है। प्रेम उसको भी चाहिए लेकिन प्रेम के अलावा भी उसे बहुत कुछ चाहिए। उसके लिए प्रेम से बड़ी है उसकी महत्वाकांक्षा।

वह अपनी महत्वाकांक्षा के लिए प्रेम को छोड़ सकता है। स्त्री प्रेम के लिए सब कुछ दांव पर लगा सकती है। पुरुष के लिए प्रेम जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जबकि स्त्री के लिए प्रेम ही जीवन है। स्त्री के व्यक्तित्व में प्रेम का तो केंद्र है लेकिन महत्वाकांक्षा का कोई केंद्र नहीं है। वह प्रेम के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर सकती है और पुरुष अपनी महत्वाकांक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर कर सकता है, प्रेम को भी। लाखों पुरुष इसीलिए अविवाहित रह जाते हैं क्योंकि पत्नी उनकी महत्वाकांक्षा में बाधा बनेगी। सिर्फ इसीलिए अविवाहित रह जाते हैं कि उनकी जो एंबीशन है वह पूरी नहीं हो सकेगी।

दूसरा अंतर है कि पुरुष का प्रेम गति का प्रतीक होता है, उसका प्रेम चंचलता का प्रतीक है और वहीं स्त्री का प्रेम स्थिरता का प्रतीक है। आप इस तरह से समझ सकते हो कि पुरुष प्रेम के सागर में कुछ सोचे समझे बिना ही छलांग लगा है लेकिन स्त्री का प्रेम स्थिर और शांत होता है वह प्रेम के सागर में बहुत सोच समझ कर धीरे से उतरती है।

जब किसी पुरुष को किसी स्त्री से प्रेम होता है तो उसके भीतर प्रेम का तूफान उठ जाता है और वह तूफान उसे कही चैन से बैठने नहीं देता है। प्रेम होने की स्थिति में पुरुष बेक़रार हो जाता है स्त्री को अपने दिल की बात बताने के लिए, उन तक पहुंचाने के लिए वह कुछ भी करेगा। पर इसके ठीक विपरीत स्त्री ऐसे समय में जल्दी बेक़रार नहीं होती वह वह चीजें समझने के लिए खुद को समय देती है। वह सब कुछ संयम से करती है लेकिन जैसे ही कोई स्त्री किसी पुरुष को स्वीकार कर लेती है वह अपने आप को विजेता समझता है। यहां पर वह पूरी तरह से अपने प्रेम के लिए संतोष मान लेता है। स्त्री की हां पुरुष के प्रेम का पीक प्वाइंट है। यहां से पुरुष का प्रेम ढलने लगता है जबकि स्त्री का प्रेम अब पग बढ़ाने शुरू करता है।

पुरुष के प्रेम का स्वभाव चंचल होता है जिस कारण वह बहुत ही जल्दी स्त्री के प्रेम से ऊब जाता है लेकिन जो स्त्री किसी पुरुष के प्रेम को एक बार स्वीकार करती है तो हमेशा के लिए और सम्पूर्णता से उसको स्वीकार कर लेती है। स्त्री एक पुरुष के प्रेम में पड़ने के बाद उसे खोना नहीं चाहती, उससे अलग होना नहीं चाहती क्योंकि उनके प्रेम का स्वभाव है ठहरना। पुरुष के चंचल प्रेम का यह स्वभाव होता है कि जब वह किसी स्त्री को पाना चाहता है उस समय पर वह कुछ भी कर सकता है लेकिन स्त्री शुरू में किसी पुरुष के प्रेम को जीतने के लिए, उसको पाने के लिए कुछ भी नहीं करेगी। वह उस पुरुष के प्रेम का इंतजार करेगी लेकिन एक बार किसी पुरुष का प्रेम उसके जीवन में आता है तो उसे संभाल के रखने के लिए स्त्री कुछ भी कर सकती है।

किसी पुरुष को जब प्रेम होता है वह पूरे दिल से प्यार करता है। पूरे जुनून से प्यार करता है और वफादार भी होता है पर देखा जाता है की अपने प्रेम को पा लेने के बाद वह थोड़ा लापरवाह हो जाता है। वहीं जब किसी स्त्री को किसी पुरुष का प्रेम मिल जाता है उसके बाद वह पुरुष उससे प्रेम करें या ना करें, उसकी ओर पहले जैसा लगाव रखे या ना रखे, अगर वह किसी पुरुष को अपना बनाती है उसके बाद जीवन भर उससे प्रेम करती है। आप यह कह सकते हो कि प्रेम की शुरुआत पुरुष करता है लेकिन उसका अंत अर्थात आखरी भाग स्त्री पर जाकर खत्म होता है। पुरुष का प्रेम जब ढलान की ओर बढ़ने लगता है तब स्त्री का प्रेम उठान की ओर बढ़ना शुरू होता है ।

दोनों अलग ग्रह के प्राणी है लेकिन मान बैठे हैं कि एक ही ग्रह के हैं। दोनों एक दूसरे को समझे बिना एक दूसरे से ज्यादा अपेक्षाएं लगा बैठे हैं। 






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