तुम्हारा दोगलापन
देखा जाए तो हम हर जगह सिलेक्टिव हैं। हमें गांव, पहाड़, खेत पसंद आते हैं लेकिन वहां हम बसना नही चाहते। छः महीने में सिर्फ दो - चार दिन के लिए वहां छुट्टी मनाने जाना चाहते हैं।
पेड़ों को काट शहर को बंजर बना हम गमले में पौधे लगा कर खुद को प्लांट लवर बोल लेते हैं।
लड्डू गोपाल लाकर भक्ति का पाखंड करने लगते हैं। अपने बच्चे तो तुमसे ढंग से पल नही रहे। कुछ दिन ड्रामेबाजी करके लड्डू गोपाल की सेवा भी बच्चों के जिम्मे कर देते हो। बच्चे तुम्हारी मूर्खता का बोझ ढोते हैं। क्या ही भक्ति करोगे तुम अगर तुम्हारा मन छल, पाखंड, मोह, और ईर्ष्या का शिकार है!
व्याभिचार करते वक्त लड़की की जाति और सूरत नही देखते, सिर्फ उसके शरीर पर मोहित हो जाते हो। शादी के लिए तुम्हे उसकी सात पुश्तें याद आ जाती हैं।
तुम शहरी हो गए लेकिन सोच तुम्हारी नही बदली। आज भी तुम्हारी मेड अलग बर्तन में चाय पीती है। गार्ड को तुम सैल्यूट करवाते हो। डिलीवरी वाले को लेट आने पर हड़काते हो। तुम्हारी बिल्डिंग में नौकरों के लिए अलग लिफ्ट है। तुम सभ्य नही, दोगले हुए हो।
Nikhil Kumar
Comments
Post a Comment
Thank you for comment