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Showing posts from April, 2018

शिक्षा पद्धति में खामियां लेकिन दोषारोप युवाओं पर

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            दिन-प्रतिदिन बेरोजगारी की समस्या भयंकर रूप लेती जा रही है जिसका कारण हम बढ़ती जनसंख्या व युवाओं में कौशल की कमी को मान लेते है। प्रायः यह मान लिया जाता है कि बढ़ती जनसंख्या ही बेरोजगारी का प्रमुख कारण है और दूसरा, हमारे युवा उस कौशल से वंचित है जिसकी मांग रोजगार क्षेत्र में जरूरी है। बढ़ती जनसंख्या का समाधान तो चीन की "one child policy" की तर्ज पर किया जा सकता है लेकिन युवा उस कौशल से क्यों वंचित है जिसकी रोजगार क्षेत्र में जरूरत है। शिक्षा पद्धति में ऐसी क्या खामियां है कि एक शिक्षित युवा जब रोजगार के क्षेत्र में जाता है तो अपने आप को निस्सहाय खड़ा पाता है? इस पर विचार करने की जरूरत है।  शिक्षा में पहली खामी तो मुझे शिक्षा के माध्यम में ही नजर आती है। यह सर्वविदित है कि हमारी शिक्षा पद्धति मैकाले की देन है जोकि ब्रिटिश राज की जरूरतों को पूरा करने के लिए लाई गई। शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा को बनाना ब्रिटिश हितों की पूर्ति हेतु ही एक साधन था जिसका मकसद काली चमड़ी के अंग्रेजों को पैदा करना था जो शरीर से भारतीय और दिमाग से अंग्रेज होते और ब...

एक लड़की के लिए इज्जत की परिभाषा

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                     इस समाज के अनुसार एक लड़की की इज्जत उसकी योनि से जुड़ी होती है। तभी तो किसी लड़की का रेप होने पर समाचार पत्रों में "एक लड़की की इज्जत लूटी" वाक्य देखने को मिलता है। उसके व्यक्तित्व, बड़ों के प्रति आदर, व काम के प्रति निष्ठा जैसे गुणों से हमें घण्टा फर्क नहीं पड़ता है।   इसी का परिणाम है कि हमारी गालियों में मां, बहन या उनके प्राइवेट पार्ट शामिल है। परिवार की प्रतिष्ठा को तोड़ने का सबसे अच्छा तरीका क्या है? परिवार की महिलाओं के बारे में अफवाहें फैला दो या उनका रेप कर दो। आखिर किसी न किसी तरह से घर-परिवार के इज्जत की पूरी जिम्मेदारी केवल महिलाओं के ही कंधों पर जो है। दंगों के समय सबसे ज्यादा घटनाएं रेप की देखी जाती है। कितनी बार आपने औरतों को पुरुषों से ये कहते हुए सुना है: माँ -बहन नहीं है क्या घर पर? ये बात बस उसे याद दिलाने के लिए कही जाती है कि उसे दूसरी औरतों का भी वैसे ही सम्मान करना चाहिए जैसे वह अपनी मां और बहन का सम्मान करता है। यह सब शुरू हुआ महिला को एक भोगवस्तु मानने से।

अर्द्धशिक्षित लोंगो से समाज को डर

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                    किसी ने कहा है कि अनपढ़ होने से बेहतर है   अर्द्धशिक्षित हो ना। लेकिन मैं इस विचार से असहमति रखता हूँ और एक लोकोक्ति'आधा ज्ञान ,जी का जंजाल' को अपना समर्थन देता हूँ। भारत की स्वतंत्रता के समय साक्षरता दर लगभग 8% थी जो कि आज की तुलना में बहुत कम थी।लेकिन मुझे उस समय की एक बात बहुत पसंद है कि उस समय के ये 8% शिक्षित लोग वास्तव में शिक्षित थे,  जो राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी राय या मत स्पष्ट रखते थे। अल्पसंख्यक होने के बावजूद इन शिक्षित लोंगो ने अपने ज्ञान के बल पर ब्रिटिश नीतियों की समीक्षा कर  अशिक्षित समाज को उससे रूबरू कराकर एक राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा कर दिया।                   आज शिक्षा दर 74% पर पहुँच गयी है। तुलना करने पर ये आंकड़े अच्छे तो लगते है लेकिन इन आंकड़ों में  अर्द्धशिक्षित   लोंगो को भीड़ शामिल है जो न तो अनपढ़ है और न ही पूरी तरह से शिक्षित है। यह आधा ज्ञान इनके लिए तो जंजाल तो है ही बल्कि समाज के लिए भी जंजाल बना हु...

सेक्स के प्रति मानव इतना आकर्षित क्यों और इसका समाधान क्या?

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                  सेक्स एक ऐसा विषय है जिस पर आकर मनुष्य चुप्पी साध लेता है, इसके बारें में बात करने से बचता है और इसको एक कमरे के अंदर तक ही सीमित रखना चाहता है।आज तक के धर्म और संस्कृतियां सेक्स को जीवन की सफलता और मोक्ष में बाधक मानते आए हैं। हर कोई चाहे वो कोई साधु हो, संन्यासी हो, संत हो, महात्मा हो, सूफी हो या एक साधारण इंसान, सब के सब सेक्स के विरोध में खड़े है लेकिन आश्चर्य है कि आज तक इससे पिछा भी नहीं छुड़ा पाएं हैं। वर्तमान में सेक्स एजुकेशन देने की बात की तो जाती है लेकिन सिर्फ बात ही की जाती है। बायोलॉजी का अध्यापक सेक्स के बारें में बताने से हिचकता है। इन सबका परिणाम निकलके आता है कि सेक्स के बारे में आधा- अधूरा ज्ञान लेकर ही अपने आप को सेक्स का विद्वान घोषित कर देते हैं।   यह बात मेरी समझ के बाहर है कि लोग सेक्स को बुरा क्यों मानते है जबकि यह मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं की सूची में अपना स्थान रखता है। यह सर्वविदित है अगर मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती हैं तो वह अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता और अपनी ...