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Showing posts from February, 2024

मैं चार्वाकी

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मैं कई सालों से चार्वाकी हूं। चार्वाक दर्शन या जिसे लोकायत दर्शन भी कहते हैं, का मतलब, वह मत जो इस लोक में विश्वास करता है और स्वर्ग, नरक और मुक्ति की अवधारणा में विश्वास नहीं रखता है। इनका मानना है कि धर्म नाम की वस्तु को मानना मूर्खता है क्योंकि जब इस संसार के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर्ग है ही नहीं तो धर्म के फल को स्वर्ग में भोगने की बात अनर्गल है। पाखंडी धूर्तों के द्वारा कपोल कल्पित स्वर्ग का सुख भोगने के लिए यहां यज्ञ आदि करना धर्म नहीं है, बल्कि अधर्म है। हवन आदि में वस्तुओं का दुरुपयोग तथा व्रत द्वारा व्यर्थ शरीर को कष्ट देना पागलपन है। इसलिए जो कार्य शरीर को सुख पहुंचाए उसी को करना चाहिए। जिससे इंद्रियों को तृप्ति हो, मन आनंद से भर जाए, वही कार्य करना चाहिए और उन्हीं वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। जो भी तत्व शरीर, इंद्रियों, मन को आनंद देने में बाधक होते हैं उनका त्याग कर देना ही धर्म है। इस जन्म से पहले का ना हम जानते हैं और ना ही बाद का तो उनकी चिंता ही क्यों करना। अगर ये होते या महत्वपूर्ण होते तो ईश्वर यह व्यवस्था जरूर करता कि अगले और पिछले जन्म हमे याद रहें। अगर नही याद हैं तो...

हिंदू धर्म के अलावा बाकी धर्मों के गरीब क्यों अपना धर्म परिवर्तित नही करते हैं?

क्योंकि हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था बहुत गहरा असर छोड़ती है। आज दलितों को आरक्षण मिला हुआ है लेकिन आज भी वे गरीब हैं। उनके पास बहुत ही छोटे घर हैं, खेत नही हैं, ऊंची शिक्षा प्राप्त करने के लिए आर्थिक परिस्थितियां मजबूत नही। इसलिए उन्हें समय से पहले ही शिक्षा छोड़ मजदूरी में जुटना पड़ जाता है। अगर कोई आरक्षण का सहारा लेकर उच्च पद पर पहुंच भी जाता है , तब भी वह अपनी जाति के कारण समाज में नीची निगाह से ही देखा जाता है। उसे उसका उच्च पद सामाजिक प्रतिष्ठा नही दिला पाता है। और यह सब जाति व्यवस्था के कारण ही हैं जिसके नीचे वे सदियों से दबे हुए हैं। धर्म परिवर्तन उन्हे यह आशा देता है कि शायद उन्हें दूसरे धर्म में यह भेदभाव नहीं झेलना पड़ेगा। लेकिन गरीब किसी भी धर्म का हो या किसी भी अन्य धर्म में परिवर्तित हो जाए , शोषण का शिकार रहेगा ही। वे भूल जाते हैं कि दूसरे धर्म में जाने पर उन्हें उस धर्म के उच्च वर्ग में फिर भी स्थान नही मिलेगा। वे वहां भी दलित ही कहलाए जायेंगे। अन्य धर्म के लोग इस कारण से धर्म परिवर्तन का शिकार होने से बचे रहते हैं क्योंकि एक तो उनका धर्म कट्टरपन लिए हुए होता है। हिंदू ...

क्या सरकारी नौकरी युवाओं की जवानी खा रही है?

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अक्सर लोगों को कहते हुए सुनता हूं कि युवा सरकारी नौकरी के चक्कर में अपनी जवानी गवां रहे हैं। सरकारी नौकरी में कोई एसएससी की तैयारी कर रहा है, कोई बैंक की, कोई सिविल सर्विस की। आचार्य प्रशांत जैसे लोग कहते हैं कि सरकारी नौकरी को सिर्फ दो साल दो, अगर नही लगे तो आगे बढ़ जाओ। लेकिन उस व्यक्ति के लिए यह कहना आसान है जो आईआईटी, आईआईएम से पढ़ा है और सिविल सर्विस छोड़ बैठ आचार्य बन गया है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि उन्हे सब छोड़ आचार्य बन जाने की अनुमति देती है। शायद उन्हें पता नही कि एक वेकेंसी को पूरा होने में तकरीबन 3-4 साल तक लग जाते हैं। दो साल में अगर कोई जॉब पा ले तो धन्य भाग्य उसके। सालों से सरकारी जॉब की तैयारी में लगे युवा उस पृष्ठभूमि से आते हैं जिसमें पीछे हटने का सवाल नहीं होता है। किसी का बाप मजदूर है तो किसी का किसान। उनके लिए आर या पार का युद्ध होता है। तैयारी छोड़ भी दें तो वे कौन सा अंबानी बन जायेंगे, तब भी उतना ही कमा पाएंगे जितने में बस खर्चा ही चल पाएगा, जिंदगी जैसे - तैसे कटेगी। कम से कम सरकारी नौकरी की तैयारी उन्हे एक आशा तो देती है कि आने वाला कल अच्छा भी हो सकता है। जो ...

क्यों जरूरी है ईश्वर पर आस्था..!

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क्या तुम ईश्वर में विश्वास करते हो? करना पड़ता है। मतलब? मतलब ये साहेब कि इस जटिल दुनिया मे जहां चारों और संघर्ष है। हर कोई तुमसे आगे निकलने को तैयार है। हर तरफ आर्थिक और सामाजिक विषमता है। ऐसे में कैसे कोई अपने आप पर विश्वास रख पाएगा। उसे किसी न किसी धर्म की डोर पकड़नी ही पड़ेगी। वरना यह सामाजिक व्यवस्था उथल - पुथल हो जायेगी, चारों और विद्रोह के स्वर गूंजने लगेंगे। एक बच्चा जब जन्म लेता है तो उसे यह चुनने का मौका नहीं मिलता है कि वह किस जाति, धर्म, राज्य, देश, और वर्ण में पैदा होगा; अमीर होगा या गरीब। लेकिन पैदा होते ही इन सब ठप्पों के कारण यह निर्धारित हो जाता है कि वह कैसा जीवन जीएगा। ऐसा क्यों? क्यों सबको समान अवसर और सुविधाएं नही मिलती? यह असमानता ईश्वर ने रची या मनुष्य ने? अगर ईश्वर ने रची तो क्यों? अगर मनुष्य ने रची तो इसे आज तक पाटने का काम क्यों नही किया? मनुष्य बहुत चालाक है। उसने यह सब प्रपंच रचा और इसका दोष ईश्वर पर डाल दिया। ताकि मनुष्य यह सब ईश्वर की इच्छा जान इन सब असमानताओं को झेलता रहे। एक तरफ एक बालक अमीर घर में पैदा हो सारे सुख सुविधाओं को भोगता है, हर तरह के अवसर उस...