मैं चार्वाकी
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मैं कई सालों से चार्वाकी हूं। चार्वाक दर्शन या जिसे लोकायत दर्शन भी कहते हैं, का मतलब, वह मत जो इस लोक में विश्वास करता है और स्वर्ग, नरक और मुक्ति की अवधारणा में विश्वास नहीं रखता है। इनका मानना है कि धर्म नाम की वस्तु को मानना मूर्खता है क्योंकि जब इस संसार के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर्ग है ही नहीं तो धर्म के फल को स्वर्ग में भोगने की बात अनर्गल है। पाखंडी धूर्तों के द्वारा कपोल कल्पित स्वर्ग का सुख भोगने के लिए यहां यज्ञ आदि करना धर्म नहीं है, बल्कि अधर्म है। हवन आदि में वस्तुओं का दुरुपयोग तथा व्रत द्वारा व्यर्थ शरीर को कष्ट देना पागलपन है। इसलिए जो कार्य शरीर को सुख पहुंचाए उसी को करना चाहिए। जिससे इंद्रियों को तृप्ति हो, मन आनंद से भर जाए, वही कार्य करना चाहिए और उन्हीं वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। जो भी तत्व शरीर, इंद्रियों, मन को आनंद देने में बाधक होते हैं उनका त्याग कर देना ही धर्म है। इस जन्म से पहले का ना हम जानते हैं और ना ही बाद का तो उनकी चिंता ही क्यों करना। अगर ये होते या महत्वपूर्ण होते तो ईश्वर यह व्यवस्था जरूर करता कि अगले और पिछले जन्म हमे याद रहें। अगर नही याद हैं तो...