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Showing posts from August, 2017

निमंत्रण-पत्र की वर्तमान युग में प्रासंगिकता-

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          विवाह, जन्मदिन, सालगिराह, किसी का जन्म या मृत्यु आदि जैसे अनेक अवसर हमारे जीवनकाल में आते है। कुछ खुशी के मौके होते है और कुछ दुःख के। लेकिन लोगों को अपने दुःख या सुख में शामिल करने के लिए एक चीज की जरूरत होती है और वो है निमंत्रण पत्र।            इसका आधुनिक युग में इतना महत्व है कि अगर किसी को किसी कारणवश निमंत्रण पत्र नही मिला और उस व्यक्ति को आधुनिक संचार साधन द्वारा इस बात की जानकारी दी जाए कि अमुक अवसर पर उसको शामिल होना है तो वो आएगा नही क्योंकि उसको निमंत्रण पत्र भेजकर औपचारिकता  नही निभाई गयी।            हमें यह समझना चाहए कि निमंत्रण पत्र उस युग में प्रासंगिक था जब हमारे पास एक दूसरे से बात करने के लिए संचार के साधन उपलब्ध नही थे। इसलिए निमंत्रण पत्र भेजकर ही दुख या सुख के अवसरों पर आमंत्रित किया जाता था।लेकिन आज का युग डिजिटल युग है। आज हमारे पास संचार करने के लिए बहुत से साधन है। फोन,फेसबुक, व्हाट्सएप आदि जैसे अनेक संचार साधन आज हमारी जीवन प्रक्रिया का हिस्सा ह...

लोगों की सोच और शासन व प्रशासन की कमी से दंगे की उपज

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पिछले अनुभवों से कोई सीख न लेते हुए हरियाणा शासन और प्रशासन उस बेकाबू भीड़ पर काबू पाने में फ़िर से असफल रहा, जो उस संपत्ति को नुकसान पहुंचा रही है जो उसी के द्वारा दिये गए कर द्वारा अर्जित की गयी है। इस तरह से देखा जाए तो वह खुद अपने ऊपर प्रहार कर रही है।             यह बेकाबू भीड़ शासन और प्रशासन की उन तैयारियों पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है,जो वे पिछले 4-5 दिनों से कर रहे थे। आखिर ऐसी क्या तैयारियां की गई जो दगाँ होने के आशंका होते हुए की गई लेकिन दंगा होने पर अपना असर नही दिखा पायीं। धारा 144 का मतलब भी शायद पुलिस कुछ और ही लगा बैठी। इसी कारण उसने अंधभक्तो की भीड़ उस जिले में इकट्ठा होने दी,जिसमें CBI COURT था।           शासन और प्रशासन की कमी का खामियाजा देश की अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता है। एक तरफ देश को विकसित दिशा की राह में ले जाने के प्रयास हो रहे हैं तो दूसरी और देश के ये दंगे अर्थव्यवस्था को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देते है।           साथ ही भारतीय लोगों की यह सोच समझ से परे है कि एक...

वर्तमान युग में धर्म की प्रासंगिता पर उठते सवाल

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आज के युग में धर्म का उपयोग व्यक्तिगत रूप में न होकर संस्थागत हो गया है। जिस तरह से मध्य एशिया एवं पश्चिम एशिया में आतंकी संगठनों ने तबाही मचाई हुई है, जिसकी गूंज यूरोप में हो रहे "लोन वुल्फ" हमलों के रूप में भी सुनी जा सकती है, उससे तो यही लगता है कि धर्म का उपयोग किसी अलग ही दिशा में हो रहा है। अनेकों समुदाय अपने धर्म के कारण ही उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं जिनमें से प्रमुख हैं-बलूच, उइगर, तिब्बती, सहेलवासी, कूर्द, यजीदी, रोहिंग्या, मधेशी आदि।प्रत्येक देश किसी न किसी ऐसी समस्या से ग्रसित है जिसका संबंध धर्म से जूड़ा है। यूरोप के शान्तिप्रिय देश अवैध प्रवासियों की समस्या से ग्रसित है जो धर्म लड़ाई के कारण ही उत्पन्न हुई है।    भारत में भी अनेक समुदाय के लोग निवास करते हैं तो जाहिर है यहां की स्थिति भी कुछ अच्छी नही होगी और ये आज की समस्या नही है। हमेशा से ही लोगों ने धर्म को कुछ ज्यादा ही तरजीह दी है और उसी का नतीजा है कि धर्म का नाता प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ गया। हम इस तथ्य को प्रकाश में लाने का प्रयास करेंगें की धर्म का उदभव किन हितों की पूर्ति हेतु हुआ था और उसका उपयोग भविष्य...

संविधान के क़ुछ मूलतत्वों की संघर्षरत स्थिति

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वर्तमान समय में भारतीय संविधान के कुछ मूल तत्व अपनी पहचान बचाये रखने के लिए संघर्षरत हैं। जिनमें से प्रमुख है धर्मनिरपेक्षता, अनेकता में एकता, अपनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।  भारत की छवि प्राचीनकाल से ही धर्मनिरपेक्ष देश की रही है इसी कारणवश यहां अनेक धर्मो का जन्म हो सका हैं। लेकिन जिस तरह से वर्तमान में धर्म और राज्य का संबंध आपस में जोड़ा जा रहा है उससे तो यही लगता है कि भारत की छवि ज्यादा दिन तक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में नही रहने वाली है।हाल ही में हो रही घटनाओं से इसका अंदेशा लगाया जा सकता है। कावड़ ला रहे शिवभक्तो द्वारा भारत के तिरँगे का उपयोग देशभक्ति दर्शाने के लिए  किया जाना, देशभक्ति को गौरक्षा से जोड़ना आदि। भारत को इन सब से बचना चाहए क्योंकि यहाँ अनेक समुदायों के लोग निवास करते हैं। इन घटनाओं से उन समुदायों में असुरक्षा की भावना जागृत होती है, जो देशहित में नहीं। वे भी भारत के नागरिक है, यह देश उनका भी है और उनको भी उतने ही अधिकार मिले हुए हैं जितने बहुसंख्यक समुदाय को।अतः हमें बंधुत्व की राह पकड़नी चाहये न कि नफरत की। दूसरा मुद्दा उठता है भाष...

चीन से आयात रोकना चीन पर कितना असरकारक

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चीन से आयात रोकना कितना जायज? वर्तमान में डोकलाम से उत्पन्न तनाव की वजह से चीनी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है। इस कदम से भारत को क्या-क्या हानि उठानी पड़ेगी उसका हम विश्लेषण करेंगे। 1.भारत WTO का सदस्य है जो व्यापार में किसी भी हस्तक्षेप को नकारता है। अतः भारत के इस कदम से विश्व स्तर पर भारत की गलत छवि बनेगी,जो भारतीय अर्थव्यवस्था के हित में नही है। 2.भारत को चीन से कम कीमत पर रोजमर्रा की वस्तुएं प्राप्त होती है। अगर चीन से आयात बंद होता है तो भारतीय उद्योग इतने परिपक्व अवस्था में नही है जो कम कीमत पर भारतीय उपभोक्ताओं को निर्मित वस्तुएं दे सके। जाहिर है वस्तुओं की कीमतों में इजाफा होगा, जिसका अंतिम भार भारतीय उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा, जोकि पहले से ही गरीब है। 3,चीन को भारत के इस कदम से कोई फर्क नही पड़ने वाला क्योकि चीन अपने सम्पूर्ण निर्यात का केवल 2%ही भारत को निर्यात  करता है। चीन की 'one belt, one road'योजना के पूर्ण होते ही भारत पर से यह 2% निर्भरता  भी खत्म हो जायेगी। 4.क़ुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन के साथ भारत का व्यापार संतुलन नेगे...

स्थायी समाधान की जरूरत

हाल ही में सरकार ने एक पहल शुरू की है कि IAS के उच्च स्तरीय कुछ पदों पर निजी क्षेत्र से नियुक्ति की जायेगी। सरकार का कहना है कि निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ सार्वजनिक  क्षेत्र मे अपने अनुभवो का प्रयोग कर शासन प्रणाली को सुचारू रूप से आगे बढ़ा सकते है।         एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि सरकार द्वारा IAS के उच्चस्तरीय पदों पर निजी क्षेत्र से नियुक्ति लाभदायक भी है या नहीं। जरा विचार करो अगर किसी अस्पताल में किसी हाकिम को ईलाज करने के लिए और न्यायालय में किसी काजी या किसी पुजारी को न्याय करने के लिए  यह बोलकर बैठा दिया जाए कि सरकार अब अन्य विशेषज्ञों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका देगी, तो यह मरीज और अपराधी के जीवन के साथ खिलवाड़ नही तो क्या है?      क्या सरकारी अधिकारियों में प्रतिभा की कमी पायी जाती जो उनकी जगह निजी क्षेत्र के विशेषज्ञ स्थान लेंगे? निजी क्षेत्र का विशेषज्ञ सार्वजनिक क्षेत्र की समस्याओं को कैसे समझ पायेगा, यह विचारणीय है।    इस समस्या का समाधान यह हो सकता है कि IAS जिस शैक्षणिक पृष्ठभूमि का पढ़ा हुआ है उसको उसी...

आरक्षण व्यवस्था के प्रति नकारात्मक सोच

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आरक्षण व्यवस्था को बिना समझें उसके प्रति नकारात्मक राय बना लेना सामान्य वर्ग के लोगों में आम बात है। उनको लगता है कि उनका हक किसी और को दिया जा रहा हैं, जो उनसे ज्यादा योग्य नही हैं। लेकिन समझने वाली बात यह है कि आरक्षण व्यवस्था को लाने के पीछे योग्यता एवँ अयोग्यता को सिद्ध करने की कोई मंशा नही थी। क्योंकि अगर ऐसा होता तो देश को अंग्रेजों से आजाद कराने की जरूरत क्या थी? अंग्रेज भी तो देश चलाने के लिए योग्य थे। आरक्षण व्यवस्था को इसलिए लाया गया ताकि पिछड़े वर्गों को  सामाजिक रूप से समाज की सामान्य धारा में लाया जा सके। अब आप यह कहेंगें कि सामान्य वर्ग के बहुत से परिवारों की आर्थिक स्थिति आरक्षित वर्ग जैसी ही है, इसलिए आरक्षण व्यवस्था उन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।   यहाँ ध्यान देने योग्य यह है कि उन आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य परिवारों के साथ दलित शब्द नही जुड़ा है, जो उनको दलित समुदाय से अलग करता है। यह सामाजिक विभेद ही आरक्षण व्यवस्था लाने का कारण है और शायद कारण बना रहेगा।  अब बात आती है कि इसका समाधान क्या है जो दो वर्गों के बीच यह सामाजिक विभेद मिटा दे। एक महाशय ...

राजनीति मे मध्य वर्ग की आवश्यकता

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"मैं भारत के आदर्शवादी पेशेवर लोगों से कहना चाहता हूं कि अगर आपको देश की फिक्र है तो राजनीति में आइये।" शशि थरूर का यह कथन भारत के मध्य वर्ग,जो अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने में ही व्यस्त है और जो यह मानता है कि राजनीति उनके लिए है जो किसी काम के नही हैं, के लिए एक आह्वान है।  भारतीय जनता भी जाति एवं धर्म की राजनीति नही चाहती। वह एक अच्छी और स्थायी सरकार चाहती हैं जो देश के विकास पर ध्यान दे। अगर ऐसा नही होता तो दिल्ली में शायद ही अरविंद केजरीवाल की सरकार बन पाती।  भारतीय राजनीति में मध्य वर्ग की नाममात्र की ही भागीदारी है जबकि विकसित देशों में मध्य वर्ग का बोलबाला हैं। अमेरिका के पिछले 16 राष्ट्रपति उम्मीदवारों में से 12 हॉवर्ड या येल से ग्रेजुएट थे। लेकिन भारत का शिक्षित वर्ग किसी प्रतिष्ठित जॉब की तलाश में रहता हैं और भारतीय राजनीति के लिए शिक्षा को महत्वपूर्ण नही मानता हैं। इसलिए भारतीय राजनीति में अपराधियों का बोलबाला है।        लेकिन अब धीरे-धीरे भारतीय शिक्षित युवा पीढ़ी इस दिशा में जागरूक हो रही है। मेरा एक मित्र सिविल सेवा की तैयारी छोड़ रा...