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Showing posts from August, 2023

प्रतिज्ञा

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मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई किताब प्रतिज्ञा का सार तत्व समाज में विधवा महिलाओं की दयनीय स्थिति के इर्द- गिर्द है। इस कहानी के मुख्य पात्र अमृतराय, दाननाथ, प्रेमा, पूर्णा, कमला प्रसाद व उसके पत्नी सावित्री है। प्रेम की चिकनी चुपड़ी बातें बनाकर लड़कियों को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है, यह कमलाप्रसाद के जरिए और लड़कियां बेवकूफ कैसे बनती हैं, यह पूर्णा के जरिए प्रेमचंद ने इस उपन्यास में अच्छे से बताया है। इस किताब की सबसे शानदार किरदार प्रेमा या पूर्णा नही बल्कि कमलाप्रसाद की पत्नी सावित्री है। अपने पति की कुरीतियों का वह डटकर मुकाबला करती है और समानता के अधिकार की मांग रखती है। कमलाप्रसाद जैसे व्यक्ति का मुकाबला सावित्री जैसी स्त्री ही कर सकती है।  पूर्णा जैसी औरतों को तो ये समाज निगलने को तैयार बैठा रहता है। वो तो शुक्र है अमृतराय का कि उसने विधवा आश्रम खोल दिया नही तो पूर्णा का जलसमाधि लेना तय था। मैं तो यह पहले से ही सोच कर बैठा था कि ये तो मरनी निश्चित है। लेकिन प्रेमचंद को विधवा आश्रम की उपयोगिता को लेकर समाज में संदेश देना था इसलिए इस उपन्यास का अंत सुखांत रहा।

निर्मला

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निर्मला उपन्यास मुंशी प्रेमचंद के द्वारा दहेज़ प्रथा और बेमेल विवाह को केंद्र में रखकर लिखा गया उपन्यास है, जो इलाहबाद की ‘चाँद’ नामक पत्रिका में नवंबर 1925 से दिसंबर 1926 तक प्रकाशित हुआ था. इस उपन्यास में मुख्य पात्र निर्मला नाम की 15 वर्ष की युवती है, जिसका विवाह अधेड़ उम्र के और तीन बच्चों के पिता तोताराम से कर दिया जाता है. यह उपन्यास दहेज़ प्रथा, बेमेल विवाह के सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन पर प्रभावों का चित्रण करता है.  इस उपन्यास में सभी किरदारों को बखूबी वर्णित किया गया है। निर्मला के जीवन को केंद्रित कर इस उपन्यास को लिखा गया है। निर्मला उपन्यास में ज्यादातर किरदारों को मौत हो जाती है। निर्मला का जीवन दुखों के गीत से भरा हुआ है। इतना दुख होने के बावजूद भी हिम्मत रखती है। और जीवन के जहर को पी जाती है। महिलाओं की सहिष्णुता का एक उदाहरण है निर्मला उपन्यास। मेरा मानना है कि आज कल के जमाने में ऐसी परिस्थिति प्रकट होने पर 21वीं सदी की निर्मला तलाक का रास्ता जरुर चुनती और ऐसे दुखमय जीवन से अच्छा वह अकेली जीवन यापन करती।

गबन

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ग़बन की कहानी जालपा और रमानाथ से जुड़ी है। इस कहानी में एक सुंदर, सुख चाहने वाला, घमंडी, लेकिन एक नैतिक रूप से कमजोर व्यक्ति, जो अपनी पत्नी जालपा को उसके गहने उपहार में देकर खुश करने की कोशिश करता है, जिसे वह वास्तव में अपने अल्प वेतन के साथ खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकता है। कर्ज का एक जाल, जो अंततः उसे गबन करने के लिए मजबूर करता है। उसकी सबसे बड़ी कमजोरी ही यह है कि वह अपने मन की बात निकट से निकट व्यक्ति को भी नहीं बताता। उसकी सारी समस्याओं की जड़ यही है। गबन एक साथ कई तत्कालीन विषयों पर बहस करता है।जैसे कि मध्यवर्गीय प्रदर्शनप्रियता, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, पुरुषों की अहं प्रवृत्ति, व्यक्ति का दुर्बल चरित्र , बेमेल विवाह, सम्मिलित परिवार में विधवा को संपत्ति का अधिकार ना होना, जाति व्यवस्था, स्वराज के लिए अपने पुत्रों को भी बलिदान कर देने की जिंदादिली, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग, सरकारी गवाह के प्रति तत्कालीन समाज का नजरिया, पुलिस प्रशासन का भ्रष्ट रूप, वेश्याओं की समाज में स्थिति। मुझे लगता है कि इस उपन्यास का नाम गबन नही बल्कि जालपा होना चाहिए था। ...

तुम पहले क्यों नहीं आए

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किताबें खरीदने के पीछे कई कारण छिपे होते हैं। किसी किताब का नाम हमें अपनी ओर खींच लेता है तो किसी का कवर। किसी किताब का लेखक हमे प्रिय लगता है तो किसी किताब का कॉन्टेंट। लेकिन इस किताब में चारों खूबी हैं। इसका लेखक, कॉन्टेंट, कवर और नाम; सभी बेहतरीन हैं। पुस्तक में बारह सच्ची कहानियाँ हैं जिनसे बच्चों की दासता और उत्पीड़न के अलग-अलग प्रकारों और विभिन्न इलाक़ों तथा काम-धंधों में होने वाले शोषण के तौर-तरीक़ों को समझा जा सकता है। जैसे; पत्थर व अभ्रक की खदानें, ईंट-भट्ठे, क़ालीन कारख़ाने, सर्कस, खेतिहर मज़दूरी, जबरिया भिखमंगी, बाल विवाह, दुर्व्यापार (ट्रैफ़िकिंग), यौन उत्पीड़न, घरेलू बाल मज़दूरी और नरबलि आदि। हमारे समाज के अँधेरे कोनों पर रोशनी डालती ये कहानियाँ एक तरफ हमें उन खतरों से आगाह करती है जिनसे भारत समेत दुनियाभर में लाखों बच्चे आज भी जूझ रहे हैं।  आंसू आ जाते हैं उस बच्चे के बारे में पढ़ते हुए जिसे उसके ही मां - बाप उसे नरबलि के लिए एक तांत्रिक को सौंप देते हैं क्योंकि कोई मूर्ख उन्हे यह बता देता है कि यह बच्चा उनके घर के लिए अपशकुनी है। ह्रदय को गहरे तल पर जाकर झकझोरने का क...

अवचेतन मन की शक्ति

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The Secret और यह किताब, दोनों इस बात पर जोर देती हैं, कि जो भी तुम पाना चाहते हो उस पर विश्वास रखो, उसके बारे में हर पल सोचो, विश्वास रखने से ही सब मिलेगा।  लेकिन सारे धर्म भी तो ईश्वर के ऊपर विश्वास पर टिके हैं, धर्म को मानने वाला तो सबसे बड़ा विश्वासी होता है। वह अपनी हर समस्या और दुख का निवारण ईश्वर की अनुकम्पा पर छोड़ देता है। अगर इनमे लिखा सच होता तो पूरी दुनिया ही खुशहाल होती, किसी को कोई दुख होता ही नही, सबको सब मिल जाता। इस किताब का लेखक एक पादरी भी था और इसका प्रभाव किताब में भी देखने को मिलता है। किताब में बीच-बीच में बाइबल में कही बातें लिखी हैं। Prayer पर बहुत जोर दिया गया है। इस बुक को पढ़कर लगता है कि लेखक ने अप्रत्यक्ष रूप से ईसाई धर्म को प्रमोट करने की कोशिश की है। मैंने ग्रेजुएशन में The Secret पढ़ी थी। इसे पढ़कर मुझे भी ऐसा ही लगा था कि ऐसा सच में होता होगा। तब यह किताब बहुत क्रांतिकारी लगी थी। लेकिन आखिर तक आते-आते यह बुक भी कर्म पर जोर देने लगती है। इसका मानना है कि पहले सोचो, फिर विश्वास करो और जब विश्वास मन में बैठ जाएगा और उसी के बारे में दिन-रात सोचोगे तो फ...

क्रांति की विरासत

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कुछ महीनों पहले मैंने इसी ग्रुप में आप लोगों से पूछा था कि क्या कोई ऐसी किताब है जो स्वतंत्र भारत में रहे क्रांतिकारियों की जीवन शैली और उनके जीविकोपार्जन पर प्रकाश डालती हो। अनेक लोगों ने अनेक पुस्तकों के सुझाव दिए। लेकिन ज्यादातर सुझाव उन किताबों के थे जो शहीद क्रांतिकारियों पर लिखी गई थी, और आजादी से पहले के समय पर लिखी गईं थी। मोहित पाटीदार, जिन्होंने क्रांतिकारियों के बारे में सूक्ष्म अध्ययन किया है, द्वारा सुझाई गई यह किताब बिल्कुल उन्ही मुद्दों को उठाती हैं जिन्हे जानने की मुझे इच्छा थी। भारत के क्रांतिकारी आंदोलन पर कुछ दशकों में अनेक नए अनुसंधान हुए हैं. सुधीर विद्यार्थी ने इस आंदोलन के उन नायकों से जो, अंग्रेज सरकार की जेलों और यंत्रणाओं को झेल कर बाद में स्वतंत्र भारत में जीवित रहे, लंबी-लंबी मुलाकातें कर इतिहास की टूटी कड़ियां जोड़ी है. इन्हीं टूटी कड़ियों को जोड़ने पर यह किताब बनी है। इस पुस्तक को पढ़ मुझे क्रांतिकारियों के जीवन में आए संघर्ष, गरीबी और कठिनाइयों के बारे में कुछ नया जानने को मिला। किताब के कुछ प्रसंग मैं शेयर कर रहा हूं। अंडमान से छूटने के बाद शचींद्रनाथ स...

ताश के पत्ते

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प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं के संघर्ष पर लिखी गई किताबें डार्क हॉर्स और ट्वेल्थ फेल के बाद यह तीसरी किताब है जो मैंने पढ़ी है। सहज भाषा में लिखी गई यह एक शानदार किताब है। किताब इतनी रोचक है कि बीच में छोड़ने का मन ही नही हुआ और एक ही दिन में पढ़ ली गई। इस किताब में आपको दोस्ती, प्यार, सफलता, असफलता, बेरोजगारी, समाज सबका मिश्रण उचित अनुपात में दिखाई पड़ेगा। बेरोजगार शब्द कितना चुभता है यह तैयारी करने वाला विद्यार्थी ही समझ सकता है। इस शब्द का ही भय है कि वह पारिवारिक शादी -समारोह में जाने से कतराता है कि कहीं कोई उससे ये ना पूछ ले कि क्या कर रहा है वह आजकल? बेरोजगारों के दर्द को देवी प्रसाद मिश्र ने अपनी लेखनी से बखूबी उकेरा है - यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है कि क्या कर रहा है वह आजकल वह डकैती नहीं डालता वह तस्करी नहीं करता वह हत्याएं नहीं करता वह फ़रेबी वादे नहीं करता वह देश नहीं चलाता फिर भी यह सवाल उसे शर्मिंदा कर देता है कि क्या कर रहा है वह आजकल...!!! इस किताब में कुछ वन लाइनर्स जो मुझे पसंद आए - ये 'असंभव' शब्द जो हम युवाओं के लिए कभी असंभव था ही नहीं, ...

जूठन

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ओमप्रकाश वाल्मीकि की जूठन को बहुत दिनों से पढ़ने की लालसा थी जो कल जाकर पूरी हुई। यह एक ऐसी किताब है जो दिमाग़ को झकझोरने का काम करती है। यह किताब उन सभी के लिए जरूरी है, जिन्हें लगता है कि देश मे आरक्षण जरूरी नही हैं या अगर आरक्षण रखना ही है तो इसका आधार आर्थिक रखिए या जिन्हें अपने सनातन होने पर गर्व है या जिन्हें लगता है कि जाति तो बीते जमाने की बात है और आज के समय मे कोई भी जाति को नही मानता है। लेकिन मुझे यकीन है कि ये लोग इसे पढ़ेंगे ही नही। आर्टिकल 15 जैसी फिल्में और जूठन जैसी किताबें सबसे ज्यादा इन्हीं लोगों को देखनी/पढ़नी चाहिए लेकिन इन्हें देखते/पढ़ते वे लोग हैं जो जातिवाद और धर्म को पंजे से निकल चुके हैं। क़िताब को पढ़ते समय शरीर मे सिहरन पैदा हो जाती है और आश्चर्य होता है कि समाज इस घिनौनी व्यवस्था को कैसे स्वीकार कर ले रहा है लेकिन फिर इसका उत्तर भी तुरंत मिल जाता है और उत्तर है क्योंकि समाज की ऊंची जातियों को इससे फायदा है।  हालांकि ध्यान देने योग्य यह बात है लेखक ने अपने जीवन की जिस समय की घटनाओं का जिक्र किया है उस समय भारत ग़रीबी से ग्रस्त था और उस समय सामान्य किसान भी उन्ह...

Made in Heaven 2

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उलझे रिश्ते, शादी-फेयरीटेल्स, और समाज के पीछे के अंधेरे को दिखाती और सोचने पर मजबूर करती इस सीरीज को लोग क्यों इग्नोर कर रहे हैं, समझ नही आ रहा है। इसका 2019 में आया पहला सीजन भी बेहतरीन था और यह भी बेहतरीन है। इस बार भी मेड इन हेवन में कई बड़े मुद्दों को उठाया गया है. इसमें घरेलू हिंसा, रंगभेद, ड्रग्स, जुएबाजी, जात-पात, सेक्सुअलिटी, बहुविवाह और समाज में लड़कियों को लेकर लोगों की सोच शामिल है. पिछली बार की तरह इस बार भी ये शो शादी और फेयरी टेल्स की चकाचौंध के पीछे छुपे अंधेरे के बारे में बात करता है. मेकर्स ने दिखाया है कि कैसे महंगे लिबाजों, बड़ी-बड़ी कोठियों और दौलत के पीछे भी एक दर्द छिपा होता है। जहां बात होती है रिश्तों की पॉलटिक्स की। दिखावे के साथ-साथ समाज की रुढ़िवाद सोच भी सरल और सहज तरीके से दिखाया गया है।  इस शो को देखते हुए आपको समझ आएगा कि इसके किरदार आपके 'मोरल कम्पास' पर खरे नहीं उतरते. तारा खन्ना इस शो की हीरो है, लेकिन है वो ग्रे किरदार. इस शो के किरदार परफेक्ट नहीं हैं, वो भी औरों की तरह टूटे, बिखरे लोग हैं, जो बड़ी से बड़ी गलतियां और छोटी से छोटी बेवकूफियां करते ...

चार्ली 777

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कलयुग के ‘धर्मराज’ की रुला देने वाली कहानी - फिल्म ‘777 चार्ली’ एक इमोशनल कहानी है। ये यात्रा है एक इंसान की अपने पालतू को उसकी खुशियां दिलाने की। कहानी का नायक कुछ कुछ ‘कबीर सिंह’ जैसा है। फैक्ट्री, घर, बीयर, इडली, सिगरेट...बस यही उसकी जिंदगी है। चेहरे पर कोई भाव नहीं। गली से निकल जाए तो बच्चे भी डरते हैं। अगर कोई बच्चा खाना खाने से मना करता है तो उसकी मां बोलती है कि बेटा खा ले, वरना हिटलर मामा आ जायेगा।😅 एक बेघर-लावारिस कुत्ता धर्मा (नायक) के दरवाजे पर आकर रुक जाता है। धर्मा उस कुत्ते को भगाने की लाख कोशिश करता है पर कामयाब नहीं होता। यहीं से शुरू होता है दोनों का साथ और दिल को छू लेने वाला यह सुंदर सफर।  फिल्म उन लोगों की आंखें खासकर खोलती है जो कुत्तों से नफरत करते हैं। फिल्म के हीरो हैं रक्षित शेट्टी की। वह फिल्म के निर्माता भी हैं। कभी रश्मिका मंदाना से दिल लगाने वाले रक्षित ने ये फिल्म बहुत दिल से बनाई है। हिंदी सिनेमा बनाने वालों की नजर उन पर पड़ी तो जल्द ही वह किसी हिंदी फिल्म में दिख सकती हैं। फिल्म थोड़ी लंबी भी है लेकिन फिल्म के निर्देशक ने जो कुछ भी फिल्म में रखा है...

Parched

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इस मूवी की कहानी गुजरात कच्छ में कहीं दूरदराज बसे एक छोटे से गांव से शुरू होती है। इस सीन को देखकर दर्शक समझ सकते हैं कि अगले करीब दो घंटों में स्क्रीन पर उन्हें क्या दिखाई देगा। गांव की पंचायत गांव की एक नवविवाहिता को अपने पति के घर लौटने का फैसला देती है, पंचायत पीड़ित महिला की कोई बात नहीं सुनती, महिला पति के घर लौटना नहीं चाहती, क्योंकि वहां उसका बूढ़ा ससुर और देवर उसका यौन शोषण करता है। पति किसी दूसरी औरत से लगा हुआ है। वह एक अबॉर्शन भी करवा चुकी है क्योंकि उसे यह ही नही पता होता कि बच्चे का बाप कौन है। वह महिला अपना यह दर्द अपनी मां के साथ भी बांटती है, लेकिन मां भी अपनी बेटी की बात नहीं सुनती। बेशक, इस घटना का फिल्म की स्टोरी से कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन यह घटना फिल्म के टेस्ट को जरूर बयां करती है।  फिल्म इस गांव की चार महिलाओं की है। रानी (तनिष्ठा चटर्जी) की उम्र करीब 32 साल है, एक ऐक्सिडेंट में उसके पति की मौत हो चुकी है। रानी अब अपने बेटे गुलाब सिंह की शादी करना चाहती है ताकि उसके वीरान घर में बहू आ सके। गुलाब की मर्जी के खिलाफ रानी उसकी शादी कम उम्र की जानकी से करती ...

उधम सिंह

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Tell people I was a revolutionary. - Udham Singh अभी तक सिर्फ इतना ही जानता था कि सरदार उधम सिंह ने माइकल ओ ड्वेयर नाम के अंग्रेज अफसर को पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारकर जालियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था। लेकिन इस घटना के पीछे की अनसुनी कहानी को ‛सरदार उधम’ मूवी सामने लाकर रखती है। आश्चर्य होता है यह सोचकर कि ऐसे भी लोग थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए इतना कुछ सहा और अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्हें नही पता था कि वे अपने उद्देश्य में कामयाब होंगे या नही लेकिन यह जानते हुए भी उन्होंने अपनी लड़ाई लड़ी। सरदार उधम सिंह अपने कॉज़ को लेकर इतने कमिटेड थे कि उन्होंने माइकल ओ ड्वेयर को मारने के लिए 21 साल तक इंतज़ार किया और इस फ़िल्म के डायरेक्टर ने अपनी इस फ़िल्म को बनाने के लिए 20 साल तक इंतजार किया। और हम हैं कि 2-4 साल मे लक्ष्य की प्राप्ति ना हो तो अपना आत्मविश्वास ही खो बैठते हैं। ‘सरदार उधम’ एक ऐसी बायोग्राफिकल फिल्म है, जो इस जॉनर को अपनी समकालीन फिल्मों से बहुत आगे लेकर चली जाती है. इस फिल्म में जो कुछ भी घट रहा है, वो इतने रॉ और ऑरगैनिक तरीके से हो रहा है कि उसकी ऑथेंटिसिटी प...

फ्रेडी

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ये कहानी है फ्रेडी नाम के एक डेंटिस्ट की जिसे लड़कियां भाव नहीं देती है और डॉक्टर साहब को लड़कियों से बात तक करने में डर लगता है. लेकिन फिर उन्हें एक लड़की दिखती है और कार्तिक को वो बहुत ज्यादा पसंद आ जाती है. वो लड़की कार्तिक के पास अपने दांतों का इलाज करवाने भी पहुंच जाती है. फिर कहानी आगे बढ़ती है लेकिन एक ट्विस्ट के साथ और एक नहीं बहुत सारे ट्विस्टके साथ. एक मर्डर होता है और फिर वो होता है जिसकी आप उम्मीद भी नहीं करते. डरे सहमे डॉक्टर फ्रेडी ये भी कर सकते हैं. आप सोच नहीं पाते और हर थोड़ी देर में फ्रेडी आपको हैरान करता है.  फ्रेडी में आपको एक नए कार्तिक दिखेंगे. ऐसे कार्तिक जो अब से पहले कभी नहीं दिखे. इसे कार्तिक के करियर का अब तक का सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस कहा जा सकता है.

गदर 2

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गदर के डायरेक्टर को पता है कि अंधभक्ति का समय चल रहा है, इसलिए एक और गदर बनाकर रुपए छाप लेने चाहिए, फिर पता नही कब ऐसा मौका आए। भक्तों को बेवकूफ बनाना उतना मुश्किल नहीं है। सिर्फ करना यह है कि पाकिस्तान को गाली दी जाए, वहां की लड़की को ब्याह लाया जाए, वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा दिए जाएं, भारत के मुसलमानों की देशभक्ति को सराहा जाए और थोड़ा सा धर्म का तड़का लगा दिया जाए। इतना करते ही करोड़ों की कमाई करने वाली फिल्म तैयार है। फिल्म की कहानी क्या है? बॉर्डर पर एक ट्रक ड्राइवर लड़ाई लड़ रहा है। मोहतरमा एक खानसामे से सेट हो रही हैं। महाराज जी कोमा में होने के बाद भी नदी नहर कूदकर देश फांद जा रहे हैं। हथौड़े का सीन? सामने से गोलियां चल रही है और ये हथौड़े से गाड़ी तोड़ रहे हैं। लोग तलवार, भाले, बंदूक, और लट्ठ लेकर पीछे पड़े हैं लेकिन महाराज जी सिर्फ एक बार हैंडपंप की और देखते हैं और सब भाग जाते हैं। पूरी सेना के सामने हाथ-पैर सब बंधे हैं लेकिन मजाल है कि एक गोली लग जाये, लगेगा तो इनका लट्ठ... पूरा रथ का पहिया को चक्र बना देना है.. अभिमन्यु का अवतार हुआ है। फिल्म में सिर्फ मनीष वाध...

ताली

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जहां सड़क के बेघर कुत्तों की जनसंख्या की भी गणना की जाती थी, वहां थर्ड जेंडर की कोई गिनती नहीं थी. न ही उन्हें कोई संवैधानिक अधिकार (Constitutional Rights) हासिल था. किसी भी सरकारी योजना का उन्हें लाभ नही मिलता था. आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पेन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसे डॉक्यूमेंट्स वे नही बनवा सकते थे. शादी नही कर सकते थे, बच्चे गोद नही ले सकते थे. मकान, दुकान, जमीन, और किसी भी तरह की जायदाद नही खरीद सकते थे. निचोड़ यह था कि कानूनी रूप से उनका अस्तित्व ही नहीं था. यह सब बदला 2014 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जिसकी याचिका गौरी सावंत ने डाली थी. सुष्‍म‍िता सेन की 'ताली' की कहानी श्रीगौरी सावंत की जिंदगी पर आधारित है। श्रीगौरी एक ट्रांसजेंडर हैं, जो अपने समुदाय के हितों के लिए लड़ाई लड़ती है। एक ऐसी सामाज‍िक कार्यकर्ता, जिसने सड़क से लेकर कोर्ट-कचहरी तक लड़ाई लड़ी, ताकि किन्‍नरों को उनका हक मिले। तीसरे लिंग यानी थर्ड जेंडर के तौर पर देश में मान्‍यता मिले। 'आर्या' जैसी वेब सीरीज से ओटीटी के दर्शकों का दिल जीतने वाली सुष्‍म‍िता सेन ने श्रीगौरी सावंत के किरदार में पूरी...

Chimp Empire

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जब से मैंने “Planet Of The Apes” मूवी सीरीज देखी थी, तभी से मुझे chimps के बारे में जानने की उत्सुकता थी। इसी उत्सुकता को शांत करने के लिए आई है Netflix पर Chimp Empire. चिंप्स का साम्राज्य है युगांडा के NGOGO जंगल में। यह जंगल एक प्रकार का वर्षावन हैं जहां बारिश और तूफान आना सामान्य सी बात है। इसमें बताया है कि चिंप्स हमारे नजदीकी रिश्तेदार हैं जिनसे हमारा डीएनए 98% मैच होता है और जिनका व्यवहार हमसे बहुत मिलता - जुलता है। सामान्यत: एक चिंप्स की उम्र करीब 60 साल होती है। चिंप्स झुंड में रहते हैं और एक झुंड में सामान्यत: 60-70 चिंप्स होते हैं। हर झुंड का एक सरदार होता है, जिसका ताकतवर होना आवश्यक है। अगर वह कमजोर पड़ता है तो दूसरा ताकतवर चिंप उसकी जगह लेने को तैयार रहता है। इसलिए सरदार को अपनी ताकत का प्रदर्शन समय - समय पर करते रहना होता है। वह अपने पास कुछ ताकतवर सहयोगियों को भी रखता है ताकि बुरे समय में वे उसके साथ खड़े रहें। हालांकि कुछ झुंड में लोकतंत्र भी होता है और वहां सरदार अपनी सत्ता अपने सहयोगियों में बराबर बांट देता है।  झुंड का सरदार बनने में जितने खतरे तो कुछ फायदा भी ह...

वेश्यावृत्ति सिर्फ एक व्यवसाय है

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मैं अक्सर देखता हूं कि किताबों में, फिल्मों में, और सामान्य आमजन में वेश्याओं के प्रति यह धारणा रहती है कि उनका शोषण हो रहा है। वेश्याओं के पास जाने वाले आधे कस्टमर उनसे यही पूछते हैं कि तुमको इस कोठे पे किसने बेचा? कितने साल से यहां हो? कब तक ये सब करोगी? क्या तुम्हारे घरवाले जानते हैं कि तुम ये सब करती हो? क्या तुम्हें ये सब करना अच्छा लगता है? और इन सब सवालों का वेश्या के पास सिर्फ एक उत्तर होता है कि जो करने आया है वो कर ना। काहे व्योमकेश बन रहा है। तेरे जैसे शरीफ इस दिखावटी दुनिया मे शरीफ़ बने रहते हैं क्योंकि इसके पीछे हम हैं। लेकिन मैं इस पर बहस नही करना चाहता कि वेश्यावृत्ति नैतिक है या अनैतिक क्योंकि इस पर बहुत लिखा जा चुका है। और यह एक ऐसी बहस है जिसका कोई अंत नही। ना ही यह झूठा दिलासा दूँगा कि यह जल्दी खत्म हो जाएगी। वेश्यावृत्ति तो रहेगी, जब तक यह सभ्यता रहेगी। मेरा सिर्फ यह कहना है कि जरूरी नही कि वेश्यावृत्ति में शामिल सभी महिलाएं अपनी इच्छाविरुद्ध आयी हैं, कुछ अपनी मर्जी से भी इसमें शामिल होती हैं। लेकिन जब तुम उनसे बार-बार ये ही पूछोगे कि आखिर ऐसे क्या मजबूरी थी जो यह धं...

ताड़ते हुए लोग

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एक बार मैं कहीं जा रहा था तो ऑटो में अकेला ही बैठा था, इसलिए ऑटो वाला और सवारियों के इंतजार में था। मैं अपने फोन में लगा हुआ था, तभी उस ऑटो वाले ने एक लड़की को देखकर उसको माँ की गाली दी और इतनी आवाज में दी जो सिर्फ मुझे सुनाई दे, उस लड़की को नही। हमारे बीच आगे की बातचीत-  मैं - क्या हुआ?  वह- देखा उस लड़की को? हस-हँसकर फोन पर बात करती हुई जा रही है? मैं - तो हंसना मना है क्या लड़कियों के लिए? या फोन पर बात करना मना है? वह - घरवालों ने पढ़ने के लिए भेजा है या फोन पर बात करने के लिए! बहुत चालू लड़की है ये, मैं बता रहा हूँ तुम्हें। लड़की को पता भी नही कि उस ड्राइवर ने उसको गाली दी है वो भी बिना वजह के। ऐसे ही एक बार मैं Hair Salon में बैठा हुआ था, तो Salon वाला बोला कि सामने वाली मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान में एक लड़की 2 घण्टे से घुसी हुई है। यह लड़का आज इसको सेट कर ही लेगा। बहुत चालू लड़की है ये। मैंने बोला कि हो सकता है कि वो सिर्फ अपना मोबाइल ठीक कराने आयी हो!  एक और घटना बताता हूं एक व्यक्ति जिम आता है लेकिन उसको जिम में लड़कियों का आना पसन्द नही है। इसलिये जिस समय वे लड़कियां जिम म...

वो लड़कियां जो कहीं नहीं दिखती लेकिन जब जगह हैं

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आज बात करते हैं उन लड़कियों की, जिन पर किसी कवि ने नही लिखा, जिन्हें किसी मूवी में नही दिखाया गया, जिन पर किसी ने गजल नही लिखी, जिन्हें किसी विज्ञापन में नही दिखाया गया।  ये वो लड़कियां हैं जो मोटी हैं। जो छोटी हैं। जो काली हैं। जिनके होठ काले हैं या फ़टे हुए हैं। जिनके मुँह से पायरिया की और शरीर से पसीने की बदबू आती है। जिनके दांत पीले और टेढ़े हैं। जिनकी एड़ियां फ़टी होती हैं, नाखूनों के पास से खाल फ़टी होती हैं। जिनकी कांखे गंधाती हैं। ये वो लड़कियां हैं जो पूरा दिन खेत मे काम कर शाम को घर आके खाना बनाती हैं। इन लड़कियों से भी लड़के प्रेम करते हैं। इनके भी हाथ चूमे जाते हैं। इनके सामने लड़के रोकर अपना दुख हल्का करते हैं। इनकी आंखों में धूल के कण पड़ने पर लड़के फूंक मारते हैं। बीमार पड़ने पर इनकी उल्टियां साफ करते हैं। इनके दूर चले जाने पर इनके कपड़ो को सूंघ लड़के इन्हें बहुत याद करते हैं। इनके लिए लड़के बागी हो जाते हैं, घरवालों से लड़ जाते हैं। बिल्कुल ठीक ऐसे ही जैसे फिल्मी नायिका के लिए एक नायक लड़ जाता है। फिल्मों, कविताओं, गजलों, विज्ञापनों और इंस्टाग्राम जैसी झूठी दुनिया मे इनका कोई वजूद नह...

एक विवाहित महिला और एक वेश्या में ज्यादा अंतर नही!

अक्सर हमें यह सुनने को मिलता है कि वेश्यावृत्ति समाज पर कलंक है और वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाएं यह काम मजबूरी में करती हैं। लेकिन इस पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। क्या यह वास्तव में बुरी चीज है? वेश्यावृत्ति अपनाने वाली महिलाएं क्या यह सब मजबूरी में करती हैं? क्या एक विवाहित और वेश्या में अंतर है? वेश्यावृत्ति समाज के लिए बुरी है या अच्छी, इसके लिए कमेंट बॉक्स में एक लेख का लिंक है, उसे पढ़िए। वह लेख मैंने बहुत समय पहले मंटो के ‛इसमतफरोशी’ नाम के लेख से प्रेरित होकर लिखा था। अतः इसपर यहाँ लिखने का कोई फायदा नही।  अब आते हैं दूसरे प्रश्न पर। वेश्यावृत्ति अपनाने वाली महिलाएँ क्या यह सब मजबूरी में करती हैं? मैंने वेश्याओं के ऊपर लिखी करीब 3-4 किताबें पढ़ी थी, जिनमे उनके अनुभव लिखे हुए थे। वेश्यावृत्ति करना करीब 2-3 साल तक उनकी मजबूरी हो सकता है। क्योंकि कोठामालिक उनको तब तक नही छोड़ता है जब तक वह अपना रुपया वसूल नही कर लेता, जो उसने उनके बेचने वाले व्यक्ति को उस लड़की को खरीदते समय दिया था। 2-3 साल बाद इन महिलाओं के पास यह ऑप्शन रहता है कि वे अगर चाहे तो इस धंधे से निकल सकती हैं। ...

क्या भगवान है?

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कुछ सालों पहले तक मुझे भी लगता था कि ईश्वर है और जो ईश्वर को नही पूज रहा है वह सबसे बड़ा पापी है। लेकिन जैसे-जैसे इतिहास और दर्शन पढ़ा तब समझ आया कि ईश्वर जैसा कुछ होता ही नही। यह सब तो मनुष्य के मस्तिष्क की उपज है। हर धर्म अपनी व्याख्या देता है कि ईश्वर ऐसा है, वैसा है। लेकिन किसी को कुछ नही पता। सब धर्म बस ऐसे ही हाँक रहे हैं। किसी के पास कोई तथ्य नही। हर धर्म बोलता है कि तर्क मत करो सिर्फ विश्वास रखो। अगर तर्क की तराजू पर धर्मों को तौला जाएं तो हर धर्म मिट्टी में मिल जाएगा। मुझे लगता है कि ईश्वर का अस्तित्व सिर्फ एक थेरेपिस्ट की भूमिका निभाने के लिए है। लोग इस थेरेपिस्ट से अपने मन की बात कर सकते हैं, बिना किसी संकोच के। क्योंकि उनको पता है कि ईश्वर उनके राज किसी को नही बतायेगा। मनुष्य इस थेरेपिस्ट पर अपने बुरे दिनों में यह विश्वास कर सकता है कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा क्योंकि उसे लगता है कि ईश्वर उसके साथ है। ईश्वर से उन्हें आशा मिलती है, जब उन्हें चारों और से निराशा मिल रही होती है। उन्हें हिम्मत मिलती है, जब उनकी हिम्मत टूट रही होती है। अन्याय से लड़ने की शक्ति मिलती है, जब उनके साथ ...

आओ जाने बृहस्पति को

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1. सूर्य से दूरी के क्रम में इसका स्थान पांचवा है। 2. इसकी संभावना है कि जुपिटर और शनि पर डायमंड्स की बारिश होती है। 3. सोलर सिस्टम के अन्य प्लैनेट्स के मुकाबले जुपिटर सबसे तेज रोटेट करता है, इसलिए अन्य ग्रहों के मुकाबले इसका दिन सबसे छोटा होता है। इसके एक दिन में सिर्फ 10 घंटे होते हैं।  4. अगर सारे ग्रहों का द्रव्यमान जोड़ दिया जाए, फिर भी बृहस्पति का द्रव्यमान उनसे दो गुना ज्यादा बैठेगा। 5. इसका विशाल आकार होते हुए भी इसका भार सूर्य से 1/1000 है. 6. इस पर लिक्विड हाइड्रोजन के महासागर मिलते हैं। इसका अधिकांश वायुमंडल हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना है। 7. इसके चारों ओर छल्ले पाए जाते हैं। सौरमंडल के चार ग्रहों में वलय हैं और चारों ही गैस ग्रह हैं बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून।  8. जुपिटर एक गैसीय ग्रह है, जिसका मतलब है कि यहां पर सॉलि़ड सर्फेस नहीं है, जहां पर स्पेसक्राफ्ट को लैंड किया जा सके। 9. जब आप जुपिटर को ध्यान से देखोगे तो उस पर एक लाल धब्बा दिखाई देगा। यह लाल धब्बा कुछ और नहीं बल्कि एक बड़ा सा तूफान है। यह तूफान पृथ्वी की तुलना में 3 गुना बड़ा है यह तूफान जुपिट...

भारत की GDP विश्व के परिप्रेक्ष्य में

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साल 1600 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दुनिया की अर्थव्यवस्था का 22 प्रतिशत थी जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. सन 1700 तक मुगल भारत की जीडीपी दुनिया की अर्थव्यवस्था की 24 प्रतिशत हो गई , जो पूरी दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी बन गई. 1700 में 24.4% से घटकर 1820 में भारत की जीडीपी वैश्विक जीडीपी का 16% रह गई। 1870 तक यह गिरकर 12% और 1947 तक 4% रह गई।  कुछ महीने पहले भारत का विश्व की सबसे बड़ी पांचवीं अर्थव्यवथा बनने पर हर भारतीय ने खुशी मनाई लेकिन यह खुशी भी थोथी ही है। भारत का ब्रिटेन से बड़ी अर्थव्यवस्था बनना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है क्योंकि समृद्धि के मामले में भारत अभी भी ब्रिटेन से बीस गुना पीछे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और आर्थिक विश्लेषक एमके वेणु कहते हैं, "अर्थव्यवस्था के कुल साइज के मामले में भारत ब्रिटेन को पीछे छोड़ देगा, ये तो होना ही था. मायने ये रखता है कि लोगों की आर्थिक स्थिति क्या है. ब्रिटेन में अभी भी प्रति व्यक्ति आय 45 हज़ार डॉलर से ऊपर है, भारत में अभी भी क़रीब 2 हज़ार डॉलर प्रति वर्ष ही है." वेणु कहते हैं, "अगर वास्तविक तुलना करनी है ...

मनुष्य का अंतिम ध्येय

मैं कई सालों से चार्वाकी हूं। चार्वाक दर्शन या जिसे  लोकायत दर्शन भी कहते हैं, का मतलब, वह मत जो इस लोक में विश्वास करता है और स्वर्ग, नरक और मुक्ति की अवधारणा में विश्वास नहीं रखता है। इनका मानना है कि धर्म नाम की वस्तु को मानना मूर्खता है क्योंकि जब इस संसार के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर्ग है ही नहीं तो धर्म के फल को स्वर्ग में भोगने की बात अनर्गल है। पाखंडी धूर्तों के द्वारा कपोल कल्पित स्वर्ग का सुख भोगने के लिए यहां यज्ञ आदि करना धर्म नहीं है, बल्कि अधर्म है। हवन आदि में वस्तुओं का दुरुपयोग तथा व्रत द्वारा व्यर्थ शरीर को कष्ट देना पागलपन है। इसलिए जो कार्य शरीर को सुख पहुंचाए उसी को करना चाहिए। जिससे इंद्रियों को तृप्ति हो, मन आनंद से भर जाए, वही कार्य करना चाहिए और उन्हीं वस्तुओं का सेवन करना चाहिए। जो भी तत्व शरीर, इंद्रियों, मन को आनंद देने में बाधक होते हैं उनका त्याग कर देना ही धर्म है। इस जन्म से पहले का ना हम जानते हैं और ना ही बाद का तो उनकी चिंता ही क्यों करना। अगर ये होते या महत्वपूर्ण होते तो ईश्वर यह व्यवस्था जरूर करता कि अगले और पिछले जन्म हमे याद रहें। अगर नही याद है...